"कम्पवात (Parkinson's) – कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज"

Apr 15, 2025
आयुर्वेद ज्ञान
"कम्पवात (Parkinson's) – कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज"

शरीर के सभी अंगो के कम्प या केवल सिर के कम्पन को कंपवात कहते हैं| मिथ्या आहार-विहार तथा वात को प्रकुपित करने वाले कारणों से वात विकार उतपन्न होते हैं | आयुर्वेद में 80 प्रकार की वात व्याधियों का वर्णन मिलता है,जिनके कम्पवात भी सम्मिलित है | 


कम्प का शाब्दिक अर्थ है काँपना,जिसे साधारण बोलचाल की भाषा में हिलना या हिलते रहना ही कह सकते हैं | 


नाडीमंडल के द्वारा मनुष्य के सम्पूर्ण शरीर के अंग-प्रत्यंगो की चेष्टाओं का नियंत्रण होता है | 


कम्पवात रोग में प्रकुपित हुआ वायु नाड़ी मंडल की स्थिरता को नष्ट कर देता है | इस रोग में बिना शीत के रोगी का शरीर का कोई अंग लगातार कांपता रहता है 



कारण - काम,क्रोध,शोक,भय आदि के कारण मानसिक क्षोभ उतपन्न होता है | इस मानसिक क्षोभ के प्रभाव से नाडीमंडल भी प्रभावित होता है,जिसके कारण नाडीमंडल का शरीर की चेष्टाओं पर नियंत्रण कम हो जाता है,इसलिए सम्पूर्ण शरीर कांपने लगता है | 


आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं के अनुसार शजील पिंड ( CORPUS STRIATUM) चेष्टावह कोषों का अपजनन होने के कारण यह रोग उत्पन्न होता है | 


यथार्थ में डोपोमीन(DOPOMINE) तथा होमोवेनिलिक एसिड ( HOMOVANILIC ACID) नाम के दो तत्वों से एक्स्ट्रा पिरॅमिड्ल ट्रैक्ट (EXTRA PIRAMIDAL TRACT) की चेष्टा शीलता का नियंत्रण होता है | 


जब कभी इन दो तत्वों का आभाव होता है,तब चेष्टाशीलता भी प्रभावित होती है तथा कम्प रोग उत्पन्न होता है | 

आजकल जिन्हे नींद नहीं आने की बीमारी होती है, वे लोग नींद की गोलियां लगातार सेवन करते हैं,ऐसे लोग भी कम्पवात की चपेट में आ सकते हैं | 



यह रोग अकस्मात प्रारम्भ होता है | इस रोग से आक्रांत अंग की पेशियों मे स्तंभ तथा कम्प प्रायः एक साथ ही उत्पन्न होता है | सर्वप्रथम पेशियों में स्तम्भ ( कठोरता ) होकर उनकी कार्य करने की शक्ति प्रभावित होती है | तत्पश्चात उस अंग में कम्प होता है | प्रायः जिस अंग में स्तम्भ होता है,उसमे थोड़ा थोड़ा कम्प होता है तथा जिसमे कम्प अधिक रहता है,उसमे थोड़ा स्तम्भ होता है ,लेकिन सम्बंधित अंग के कार्य करने की शक्ति दोनों स्थितियों में प्रभावित होती है | 


यह रोग सामान्यतः 50 वर्ष की उम्र के बाद ही होता है,लेकिन चोट लगने से,फिरंग रोग के उपद्रव स्वरुप, किसी तीव्र संक्रामक रोग के उपद्रव स्वरुप,अपमी शक्ति से अधिक शारीरिक श्रम तथा नशीले पदार्थों का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से कम्पवात किसी भी उम्र में हो सकता है | 



लक्षण - लक्षणों के आधार पर कम्पवात दो प्रकार का होता है - (1) जिस स्थिति में सम्पूर्ण शरीर के सभी अंग थोड़ा-थोड़ा कांपते हैं,उसे सर्वांग कम्प या कम्पवात कहते हैं | 


(2) जिसमे सिर,हाथ या पैर आदि अंगों में से कोई एक ही अंग कांपता है,तब उसे एकांग कम्प या वेपषु कहते हैं | 


इसके अतिरिक्त सर्वांग कम्प तथा एकांग कम्प के अन्य लक्षण एक जैसे होते हैं | 

जिस अंग में कम्प होता है ,वह पहले कुछ समय तक स्तब्ध रहता है | 

सर्वांग कम्प के प्रारम्भ में अनाम्यता (rigidity) मुख्य लक्षण होता है | इसमें मुख,गर्दन,धड तथा हाथ-पैरों को झुकाने में  कठिनाई होती है | 

सामान्यतः पेशियाँ शिथिल हो जाने से सम्बंधित अंग के कार्य करने की शक्ति का ह्रास होता है| बाद में अनाम्यता और स्तब्धता नष्ट होकर कम्प बढ़ जाता है | 

यदा-कदा कम्प किसी एक अंग में होता है, जो धीरे-धीरे दूसरे अंगों में भी बढ़ता है | 

गर्दन का कम्प अधिकांश रूप से देखने में आता है | इसे शिर:कम्प भी कह सकते हैं ,किन्तु शिर:कम्प से पीड़ित व्यक्ति जब भी कोई काम करता है उसके हाथ भी कांपने लगते हैं,जिससे वह व्यक्ति लिखने का काम नहीं कर सकता | सम्बंधित अंग में दुर्बलता तथा कार्य करने की शक्ति का आभाव प्रारम्भ में कम रहता है,किन्तु बाद में बढ़ जाता है | बाद में बोलने चालने से भी कम्प अनुभूति होती है | प्रायः सोने के समय कम्प नहीं रहता | 


चकित्सा सिद्धांत -


कम्पवात यदि फिरंग रोग के उपद्रव स्वरुप या औषधियों के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग  करने से हुआ है ,तो रोगी का पूर्व इतिहास जानकर तदनुसार चिकित्सा करना चाहिए | कम्पवात रोग यदि नया है तब कष्टसाध्य होता है,किन्तु एक वर्ष का हो जाने पर असाध्य हो जाता है | लगातार चिकित्सा करने से यह रोग अधिक नहीं बढ़ता तथा कष्ट भी कम  देता है | इसमें स्नेहन,स्वेदन,स्निग्ध विरेचन एवं वातनाशक औषधियों का प्रयोग करना चाहिए | 


औषधि चिकित्सा - 


कम्पवात की व्याधि में रस सिन्दूर,कम्पवातरि रस ,यशद भस्म,मोती की भस्म या पिष्टी ,चांदी की भस्म,महायोगराज गुग्गुलु,चन्द्रप्रभा वटी ,दशमूलारिष्ट,रास्नासप्तक तथा अन्य वातनाशक औषधियों का प्रयोग रोगी के बलाबल को दृष्टिगत रखते हुए करना चाहिए | 


कम्पवात में आशुफलकारी औषधि चिकित्सा - 


(1) सूतशेखर रस 2 टेबलेट,वातांतक टेबलेट 2,स्मृति सागर रस एक टेबलेट,वात कुलान्तक रस एक टेबलेट तथा कामदुधा रस एक टेबलेट इन सभी औषधियों को मिलाकर एक-एक मात्रा हल्के नाश्ते के बाद प्रातःकाल एवं सायंकाल दूध से सेवन करें | 


(2) लिवो सीरप दो चम्मच,बलारिष्टतीन चम्मच में जल पांच चम्मच मिलाकर ऐसी एक-एक मात्रा दिन तथा रात्रि में भोजन के बाद लें | 

(3) हाजमा पाचक  चूर्ण दो चम्मच की मात्रा में रात्रि को सोते समय एक-एक दिन के अंतराल से गुनगुने जल से सेवन करें | 

(4) आर्थोमूव आयल तथा चंदनबला लाक्षादि तेल बराबर मात्रा में मिलाकर दिन में दो बार पीड़ित अंगो की हल्के हाथ से मालिश करें | 

(5) रस सिन्दूर 125मिग्रा ,यशद 250मिग्रा ,शुद्ध देशी कपूर 20ग्राम,गाय का घी 6 ग्राम सभी मिलाकर एक-एक मात्रा गाय के दूध साथ सेवन करें | 

(6) मोती पिष्टी एक रत्ती,विषमुष्टिकाविलेह 1 तोला में मिलाकर देने से कम्पवात ठीक होती है | 


विशेष - ध्यान रहे की मल का अवरोध(कब्ज) न हो पाए | 

शाकाहारी,स्वच्छ,जल्दी पचने वाला आहार लें | 

वात रोगों में बताये गए पथ्य का पालन करें | 

सेव फल,पका हुआ पपीता आहार में अवश्य लें | 

गाय के दूध का सेवन पाचन शक्ति के अनुसार करें | 

सभी तरह की खटाई,मिर्च-मसालेदार पदार्थ,फ्रिज में रखे ठन्डे तथा नशीले पदार्थों का सेवन बंद करें |   


अपथ्य - चना,मटर,सोयाबीन तेल,आलू,तरोई,मसूर,कटहल,ज्यादा श्रम ,जागरण,ज्यादा व्रत,नमक,चावल,मिर्च,तेल,खटाई,मैथुन | 


पथ्य - उड़द की दाल |

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