सिंघाड़ा (Water Chestnut) एक जलीय फल है जो तालाबों और झीलों में उगता है। इसका वैज्ञानिक नाम Trapa natans है। भारत में इसे विशेष रूप से उपवास (व्रत) के समय खाया जाता है। सिंघाड़ा फल के रूप में भी खाया जाता है और इसका आटा (सिंघाड़ा आटा) भी बनाया जाता है, जो ग्लूटन-फ्री होता है।
सिंघाड़ा जल के अंदर पैदा होने वाला अपनी किस्म का एक विचित्र फल है। इसका रंग हरा होता है और आकार छोटा तथा बेढ़ बासा, तासीर ठंडी होती है।
इसे कच्चा भी और भून कर भी खाते हैं।
सिघाड़े के आटे की रोटी भी बनती है, इन रोगों के लिये यह उपयोगी है।
चर्म रोग-
नींबू के रस में सिंघाड़े को घिस कर लगाएं पहले तो इसके लगाने से दर्द होगा। जलन भी होगी परन्तु दस मिनट के पश्चात् सब ठीक हो जाएगा।
मर्दाना कमजोरी दूर करे-
मर्दाना कमज़ोरी का कारण होता है वीर्य का पतला होना। यदि सिंघाड़े की आटे की पक्की बनाकर एक बड़ा चम्मच गाए के दूध के साथ ले जाए तो यह रोग ठीक हो जाता है।
गले के रोग-
क्योंकि सिंघाड़े में आयोडीन अधिक मात्र में होती है इसलिये गले के सब रोग ठीक हो जाते हैं
शक्ति और ऊर्जा का स्रोत:
इसमें कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में होते हैं, जो शरीर को तुरंत ऊर्जा देते हैं।
व्रत के लिए आदर्श आहार:
यह व्रत में उपवास के दौरान खाया जाता है क्योंकि यह भारी नहीं होता और पोषक भी है।
पाचन को सुधारता है:
इसमें मौजूद फाइबर पाचन क्रिया को सुचारु करता है और कब्ज से राहत देता है।
त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद:
इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स और मिनरल्स होते हैं जो त्वचा को निखारते हैं और बालों को स्वस्थ रखते हैं।
ब्लड प्रेशर नियंत्रित करता है:
सिंघाड़ा पोटेशियम से भरपूर होता है, जो रक्तचाप को संतुलन में रखता है।
थायरॉयड के लिए लाभकारी:
इसमें आयोडीन और मैग्नीशियम होते हैं जो थायरॉयड ग्रंथि को सक्रिय रखने में मदद करते हैं।
गर्भावस्था में लाभकारी:
सिंघाड़े का सेवन गर्भवती महिलाओं को पोषण देता है और कमजोरी से बचाता है।
कच्चा फल: उबालकर खाया जाता है।
सिंघाड़ा आटा: व्रत में पराठा, हलवा या पकोड़े बनाने में उपयोग होता है।
चूर्ण/पाउडर: आयुर्वेदिक औषधियों में भी उपयोग होता है।
सिंघाड़ा प्राकृतिक रूप से "शीतल" होता है, जो शरीर को अंदर से ठंडा रखता है, इसलिए इसे गर्मियों में या व्रत के समय खाना फायदेमंद होता है।
यह मूत्रवर्धक होता है, जिससे शरीर से विषैले तत्व (toxins) बाहर निकलते हैं और किडनी स्वस्थ रहती है।
सिंघाड़े में आयरन की मात्रा अच्छी होती है, जिससे खून की कमी में फायदा होता है।
इसमें कैल्शियम और फॉस्फोरस होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है।
आयुर्वेद में सिंघाड़े का उपयोग दस्त, अपच और कमजोरी में किया जाता है।
सिंघाड़ा आटा त्वचा पर लगाने से फोड़े-फुंसी और जलन में राहत मिलती है।
सिंघाड़ा आटे के पराठे, चीला, पकोड़े, हलवा
सिंघाड़ा टिक्की – व्रत में खास
कच्चा सिंघाड़ा नमक के साथ खाया जाता है
सिंघाड़ा जूस (स्वादिष्ट और ऊर्जा देने वाला)
सिंघाड़ा एक शीतल फल है, इसलिए अत्यधिक सेवन से सर्दी-जुकाम या गला खराब हो सकता है।
कच्चे सिंघाड़े को अच्छी तरह धोकर ही खाएं।
जिन लोगों को पाचन संबंधित परेशानी होती है, उन्हें सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए।
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