बिल्ववृक्ष प्रायः धार्मिक स्थानों विशेषकर भगवान् शंकर के उपासना-स्थलों पर लगाने की भारत में एक प्राचीन परंपरा है | यह वृक्ष अधिक बड़ा न होकर मध्यम आकारवाला होता है | शाखाओं पर तीक्ष्ण कांटे होते हैं | पत्ते तीन-तीन या पांच-पांच के गुच्छों में लगते हैं | बेल का फूल सफ़ेद तथा सुगन्धपूर्ण होता है | फल प्रायः गोलाकार कड़े आवरणवाला,स्वादिष्ट मधुर और ह्रदय को प्रिय लगने वाली सुगंध लिए होता है | गूदे में सैंकड़ों बीज गोद में लिपटे हुए रहते हैं | वसंत ऋतू के अंत में पुराने पत्ते गिरकर नए आने लगते हैं | ग्रीष्म में तो यह वृक्ष हरे-हरे पत्तों एवं फलों से भर उठताहै | देश के सभी प्रांतों में मिलने वाला यह बेल कोई अपरिचित वस्तु नहीं है|
बिल्व के मूल में लिंगरूपी अविनाशी महादेव का पूजन जो पुण्यात्मा पुरुष करता है उसे निश्चय ही कल्याण की प्राप्ति होती है | जो मनुष्य शिवजी के ऊपर बिल्वमूल में जल चढ़ाता है,उसे सब तीर्थों में स्नान का फल मिलकर पवित्रता प्राप्त होती है |
यह तो रही धार्मिक महत्ता | अब इनके स्वास्थ्योपयोगी गुण कुछ इस प्रकार हैं -
दस्त की प्रारंभिक अवस्था अवस्था में बेलगिरी,सोंठ,मोचरस,धाय के फूल जल से धोकर सुखाएं | प्रत्येक 1-1 तोला,धनिया 20 तोला, सौंफ 50 तोले | सर्वप्रथम सोंठ,बेलगिरी और मोचरस के छोटे-छोटे टुकड़े कर हलकी अग्नि पर सेंक दें | गंध आते ही उतार लेना चाहिए | सभी को मिलाकर चूर्ण बना दें तथा कपड़े से उसे छानकर सुरक्षित रख दें | एक से तीन ग्राम की मात्रा में मठ्ठे या शरबत के साथ दिन में तीन बार रोगी को दें | इससे शीघ्र ही लाभ मिलेगा |
पीलिया,सूजन तथा कब्ज आदि बेल की पत्ती का रस थोड़ी काली मिर्च मिलाकर चूर्ण बना लेवे और दिन में तीन बार प्रयोग करें |
पके बेल का गूदा,इमली और मिश्री भली प्रकार जल में मसल-छानकर शर्बत तैयार कर लें | प्रातः काल में इसके सेवन से शारीरिक दाह,अतिसार,मूत्र का पीलापन,मिचलाहट,स्फूर्ति का आभाव आदि दोष शांत हो जाता है |
घाव कैसा भी हो,बिल्बपत्र को जल में पकाकर उस जल से धोने के बाद ताजे पत्ते पीसकर बाँध दीजिये | यह पीड़ा एवं मवाद दोनों का शमन कर के घाव को शीघ्र सुखाने में सहायक होता है |
ह्रदय की अधिक घबराहट,निद्रा एवं मानसिक तनाव पर वृक्ष के भीतर की छाल 10 तोले मोटी-मोटी कूटकर आधा सेर गाय के दूध में डालिये और इक्छानुसार मीठा मिलाकर प्रातः तथा सायं कुछ समय तक नियमित प्रयोग कीजिये | वायुकारक पदार्थों के सेवन से बंचित रहने पर अवश्य लाभ मिलेगा |
- (A) श्वेत प्रदर और रक्तप्रदर महिलाओं में पायी जाने वाली एक प्रकार की व्याधि है,उससे बचने के लिए इक्छानुसार गाय के दूध के साथ बेल के ताजे पत्ते को पीसकर थोड़ा जीरा मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से लाभ होता है |
- (B) नेत्रों का दुखना,लालिमा,अधिक कीचड आने में पत्तों को पीसकर पुलिट्स बांधना हितकारी होता है | बच्चों के होने वाले पीले दस्तों में एक चाय की चम्मच बिल्वपत्र-रस देने से शीघ्र लाभ मिलता है |
बेल का मुरब्बा अतिसार,आमातिसार और खून मिले दस्तों पर प्रभावशाली क्रिया दिखलाता है | आतों के घावों को अच्छा करने में मुरब्बा बड़ा ही लाभ कारी होता है | ताजे फल का गूदा,कबाबचीनी चूर्ण एक में मिलाकर ताजे दूध के साथ पिलाने से पुराने उपदंश में लाभ होता है |
रक्तविकारों में बेल का गूदा आधा पाव बराबर शक़्कर मिला कर अठ्ठनी भर की मात्रा के नित्य प्रयोग से लाभ होता है |
बेल के कोमल पत्तों को किसी निरोगी गाय के मूत्र में पीस लें | पिसी वस्तु से चार गुना तिल का तेल और तेल से चार गुना बकरी का दूध सभी को मिलाकर हल्की-हल्की अग्नि पर जलीय अंश उड़ने तक पकाएं | इसके बाद नीचे उतार लें ,शीतल हो जाने पर सुरक्षित रख दें | यह तेल कान के अनेक रोगों पर प्रभावकारी है | बहरापन सायें -सायें की आवाज़ आदि में अपना गुण दिखलाता है | इसे दिन में दो-तीन बार छोड़ें |
इन रोग के अलावा आयुर्वेदीय औषध निर्माण करने वाली फार्मेसियां और चिकित्सा जगत के पंडित ने प्रचुरता से बिल्व को अपनी विभिन्न औषधियों में स्थान देकर इसकी उपयोगिता को और भी बढ़ा दिया है | आयुर्वेद चिकित्सक अत्यंत श्रद्धा के साथ इसके विभिन्न अंगों का उपयोग रुग्ण लोगों पर करते हैं |
भारत में अनेक वृक्षों के पूजन-सम्मानादि की प्राचीन परंपरा है क्योंकि इनके अंदर गंभीर कल्याणकारी वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है |
इस प्रकार बेल वस्तुतः मानवमात्र के लिए एक कल्याणकारी प्राकृतिक वरदान है |
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