मुंहासे : कारण और निवारण
मानव आदिकाल से ही सुंदरता का पुजारी रहा है | उसे अपनी सुंदरता को बनाये रहने से ही मानसिक सुंदरता अर्थात उच्च कोटि के भाव उत्कृष्टता के साथ बने रहते हैं | अतः अपने शरीर के मुखकमल की सुंदरता निमित्य प्रत्येक व्यक्ति को सदाचार पूर्वक अपनी सुंदरता को बरकरार रखना चाहिए , क्योकि मुखकमल द्वारा ही व्यक्ति की मानसिक अवस्था एवं चरित्र का ज्ञान किया जा सकता है| 14-15 वर्ष की आयु के बाद मुख पर सेमल के कांटे के समान कफ,वायु एवं रक्त से युवाओ में होने वाली छोटी-छोटी फुंसियां निकलने लगती हैं जिसे मुंहासे कहते हैं | त्वचागत मेद ग्रंथियों का मुख बंद होने से इनकी उत्पत्ति होती है,जिससे मुख बहुत ही गन्दा दिखने लगता है | नवयुवकों एवं युवतियों में काले रंग के चिन्ह बन जाते हैं जो यह दर्शाते हैं की जो विष बाहर निकलना था वह त्वचा में ही विलीन हो चुका है | इनसे मुख की सुंदरता दूषित हो जाती है,इन्हे मुख दूषिका के नाम से जाना जाता है| यह युवतियों की अपेक्षा नवयुवकों में अधिक होने के कारण युवानपीडिका नाम से जाना जाता है | यदि इन पीडिकाओं को कच्ची अवस्था में ही दवा दिया जाए तो सूजन बढ़ जाती है और ये छोटी फुंसियां कभी-कभी फोड़ों का रूप धारण कर लेतीहैं | परिपक्व अवस्था पर फोड़ने के पश्चात एक कील सी निकल कर फुंसी वाले स्थान पर सुई के समान गड्ढा हो जाता है कहने का मतलब यह है की चाहे इन्हे फोड़ा जाए या ऐसे ही रहने दिया जाए चेहरे को इस प्रकार से विकृत कर देते हैं जिससे चेहरे का विशेष आकर्षण समाप्त हो जाता है |
मुंहासे से ग्रसित व्यक्ति एक प्रकार की हीन भावना महसूस करने लगता है तथा अपना पूरा ध्यान इन्ही फुंसियों को दवाने फोड़ने में लगा रहता है जिससे मुँह की त्वचा विकृत होकर मोटी,रुक्ष एवं निष्तेज तथा श्याम वर्ण की होने लगती है |
कारण - आधुनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो मुख्य कारण तरुणावस्था में विभिन्न प्रकार के यौन हार्मोन्स का अधिक मात्रा में उत्तपन्न होना | पुरषों में स्त्रियों मे पुरुषोचित हार्मोन स्वाभाव से अल्प मात्रा में निर्मित होता है | इसकी अधिकता से मुंहासे निकलने लगते हैं | इस हार्मोन्स के प्रभाव से त्वचा में उपस्थित वसा ग्रंथियां उत्तेजित हो उठती हैं | ये चेहरे पर सर्वाधिक संख्या में होती हैं | ग्रंथियों की नलिकाएं रोम कूपों में खुलती हैं | इनकी वसा त्वचा में स्निग्धता कायम रखती है तथा कीटाणुओं का नाश करती है | त्वचा की वसा ग्रंथियां नाड़ी मंडल द्वारा न होकर हार्मोनो के द्वारा होती है | रोमकूपों से वसा का ज्यादा स्त्राव होते रहने से इनके दीवार की कोशिकाएं विकृत हो जाती हैं जिससे रोमकूपों का मुँह बंद हो जाता है और वसा का जमाव अधिक मात्रा में अंदर हो जाता है | रुकी हुई वसा तथा कोशिकाओं के सहयोग से रोमकूप के मुँह पर एक दाना सा बन जाता है जो ऑक्सीजन के सहयोग से काला पड़ जाता है | इसके अंदर भरी हुई वसा पर विजातीय पदार्थ निर्मित हो जाते हैं जिसके कारण मुंहसोंमे संक्रमण होने पर कई बार मवाद भी उत्पन्न होती है | कुछ विद्वानों का मानना है की मुंहासे का उत्पादक “bacillus” जीवाणु है | इसके अतिरिक्त इस रोग में “stophytococcus”भी रोग उत्पादक में सहायक होते हैं |
आयुर्वेदिक कारण - रक्त विकार,मंदाग्नि,जीर्णकोष्ठवद्धता,मांस मदिरा का अधिक सेवन,गर्म पदार्थ गुड़,मिर्च,तेल,खटाई , चाय,काफी,चिकनाई,आदि चीज़ो से होता है | चेहरे पर विभिन्न प्रकार की क्रीम एवं विटामिन - A की कमी से मुंहासे उत्पन्न होते हैं |
उपचार - आयु का सहज विकार मानते हुए मुंहासे के बारे में विशेष चिंता नहीं करना चाहिए | हमेशा सादा संतुलित तथा समय पर भोजन करना चाहिए | पेट साफ़ करने के लिए सप्ताह में एक दिन का उपवास करना लाभप्रद होता है | जहाँ तक संभव हो फलों तथा हरी सब्जियों का सेवन तथा अंकुरित अनाज का सेवन करना चाहिए |
मुंहासे होने पर दिन में तीन-चार बार ताज़ा पानी एवं गुनगुने पानी में नीबू का रस डालकर चेहरा धोना चाहिए | विभिन्न प्रकार के चिकनाई या तेल युक्त क्रीम न लगाएं | बार-बार नाखुनो से न नोचें | पकी हुई कील लो हल्के हाथ से दवाकर निकालें |
उपयोग में आने वाली दवाएं -
(1) त्रिफला दस ग्राम की मात्रा में लेकर सौ ग्राम पानी में डालकर किसी कांच के बर्तन में भिगो दें | सुबह भली प्रकार मसलकर,छानकर दस ग्राम शहद मिलाकर नियमित रूप से कुछ दिन तक सेवन करने से मुंहासे मिटते हैं |
(2) ताजा आंवला तथा नीम की पत्तियां समान मात्रा में लेकर ठंडाई बनाकर सेवन करने से लाभ होता है |
(3) मुन्नका 40 ग्राम,बड़ी हरण का छिलका 20 ग्राम मिलाकर महीन पीस लें तथा 60 ग्राम मिश्री मिलाकर 2-2 ग्राम की गोलियां बनायें और दो गोली पानी या गौ दुग्ध से सेवन करने पर लाभ होता है |
(4) त्रिफला चूर्ण 3-4 ग्राम तथा शुद्ध गंधक १-2 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रात को सोते समय गुनगुने दूध या पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है |
(5) कैशोर वटी 2-2 गोली दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है |
कुछ घरेलु उपचार - (1) गुनगुने पानी में नीबू का रस डालकर मुँह को दिन में 3-४ बार साफ़ करें |
(2) धनिया,बच,लोध्र समान मात्रा में लेकर महीन चूर्ण कर रात्रि को दूध में मिलाकर मुँह में लगाना चाहिए |
(3) श्वेत चंदन,काली मिर्च तथा जायफल को पानी में पीसकर चेहरे पर लेप लगाने से लाभ होता है |
(4) अनार के छिलके( छाया में सूखे हुए) एवं हरड़ को बराबर मात्रा में लेकर दूध के साथ पीसकर मुंहासों पर लेप लगाने से लाभ होता है |
(5) फूले हुए सुहागे में शहद मिलाकर कुछ दिनों तक मुहांसों पर लेप लगाने से लाभ होता है |
(6) कलौंजी के बीज को महीन पीसकर नीबू रस में मिलाकर मुहांसों पर लेप करने से फ़ायदा होता है |
(7) संतरे के छिलके( छाया में सूखे हुए) को महीन पीसकर चने के आटे के साथ तथा गुलाब जल डालकर चेहरे पर लगाने से मुहांसे तथा झाइयां दूर होती हैं |
(8) नीम के पेड़ की ताज़ी अन्तः छाल चंदन की भांति घिसकर मुहांसों पर लगाने से लाभ होता है |
(9) जामुन की गुठली की गिरी को पानी के साथ घिसकर लेप करने से लाभ होता है |
(10) एक चम्मच नीबू रस तथा दो चम्मच ग्लिसरीन,उसमे थोड़ा सा बोरिक पाउडर मिलाकर चे
हरे पर लगाने से लाभ होता है |
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