बुढ़ापा या बृद्धावस्था शरीर में होने वाला एक जीव वैज्ञानिक परिवर्तन है ,जिसमे युवावस्था के मुक़ाबले आदमी की रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है,जब शरीर की मानसिक अवस्था कमजोर होने लगे,भार घटने लगे,त्वचा में झुर्रियां पड़ने लगे ,नज़र कमजोर होने लगे, बाल सफ़ेद होते जाएँ तो यह समझना चाहिए की शरीर बुढ़ापे की ऒर अग्रसर हो रहा है |
जीव वैज्ञानिक यह स्वीकार करते है कि हर व्यक्ति में एक निश्चित आयु में ही बुढ़ापे के लक्छण प्रकट नहीं होते हैं ,प्रत्येक व्यक्ति में बुढ़ापे की प्रक्रिया अलग – अलग आयु प्रकट होती है ,किन्तु तथ्य को निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए की व्यक्ति को बुढ़ापा आता ज़रूर है |
बुढ़ापा आने के ये प्रमुख कारण हैं —
वृद्धि और अपक्षय –
वैज्ञानिक दृस्टि से ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक प्राणी के जन्म के साथ ही वृद्धि और अपक्षय की स्वाभिक प्रक्रिया एक साथ चलना आरम्भ हो जाती है | शुरू में इस प्रक्रिया के दौरान बृद्धि अपक्षय पर हावी रहती है | किन्तु परिपक्व अवस्था ग्रहण करने पर अपक्षय बृद्धि पर हावी हो जाती है |
हमारे शरीर की सूक्ष्तम क्रियात्मक इकाई कोशिका होती है | आयु बढ़ने के साथ ही कोशिकाओं की कुल संख्या में कमी आना शुरू हो जाती है ,अतः विभिन्न अंगो की कार्यक्षमता में भी कमी आने लगती है | इस समय कोशिकाओं के अंदर द्रव की मात्रा में भी कमी आने लगती है |
घेरते हुए बाह्य संक्रमण – आदमी शरीर की अस्थिया कैल्शियम और फॉस्फोरस से निर्मित होती है | वृद्धावस्था में धीरे धीरे कैल्शियम निकलने लगता है अतः ज़रा सी चोट लगने पर हड्डी टूटने या फ्रैक्चर होने का डर बढ़ जाता है |
आपने देखा होगा की वृद्ध व्यक्ति को अक्सर बीमारियां आ घेरती हैं इसका प्रमुख कारण शरीर के “हिमोपायेटिक” ऊतकों में होने वाला परिवर्तन है | ये वे ऊतक हैं जो लाल व श्वेत कणो निर्माण करते हैं | इस अवस्था में ऊतक उक्त कणो का निर्माण करने में असफल हो जाते हैं | लाल रक्त कणो कमी के कारण “एनीमिया”का कारण बनती है|
बुढ़ापे में स्वस्थ रहने के उपाय
इन सब अवस्थाओं के वावजूद आदमी अपनी दिनचर्या नियमित करके ,सुबह शाम टहलकर ,भोजन में नियंत्रण करके,इक्छाशक्ति को बनाये रखकर बुढ़ापे में भी दृढ़ता के साथ जीवित रह सकता है | उसे अपनी शारीरिक अवस्था को मस्तिष्क पर हावी नहीं होने देना चाहिए| यह जीवन और आयु ईश्वर की देन है जितनी हमारी आयु है उतना हमें जीवित रहना होगा किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए की
बुढ़ापे को नहीं रोका जा सकता है |
इस अवस्था में अधिक दवाइयों का सेवन उचित नहीं क्योकि इस आयु में वे विशेष प्रभावकारी न होकर हानि पहुंचाने वाली सिद्ध हो सकती है | सामान्य शारीरिक श्रम व्यायाम और योगासन आदि वृद्धावस्था में अमृत के समान होते हैं | अनेक प्रयोगों से ये सिद्ध हो चूका है की मिताहार या कम मात्रा में भोजन करने से बढ़ी हुई उम्र में भी आराम से जिया जा सकता है | हमारे प्राचीन ऋषि मुनि इसीलिए दीर्घ जीवी होते थे क्योकि वे कंद मूल फल आदि खा कर या नाम मात्र का भोजन कर के जीवित रहते थे | मिताहार ही उनकी लम्बी आयु का प्रमुख कारण था |
स्मरण रखिये वृद्धावस्था एक दिन सभी को आएगी | आप यदि आज वृद्धों का सम्मान करेंगे तो कल आपका भी सम्मान होगा | वृद्धावस्था एक अनिवार्य प्रक्रिया है जिसे रोका तो नहीं जा सकता किन्तु नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है| यह अवस्था निराशा से नहीं अपितु आशा के साथ जीने की है| अपने अनुभव और अध्यन को दोहराने की है जिसके लिए स्वयं को सदैव तैयार रखना चाहिए |
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