निरंतर तनाव से आपके स्वास्थ्य और व्यक्तित्व पर दुष्प्रभाव पड़ता है,जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते | सिरदर्द,पेट की गड़बड़ियां और कमरदर्द उन अनेक बीमारियों में से हैं,जो तनाव की वजह से हो जाती है | इनके कारण आपकी खुशियों और संबंधों में दरार पड जाती है | लेकिन निम्न सुझावों का पालन करने पर आप तत्काल मुक्त हो सकते हैं | अत्यधिक,उदासी,निराशा,आत्मविश्वाश की कमी,अपराध बोध,अत्यधिक थकान,आत्महत्या की प्रवृति,घबराहट,भूल जाना,अनिद्रा,भूख की कमी,यौन संबंधों में अरुचि कुछ प्रमुख कारण हैं |
हर व्यक्ति के जीवन में सुख-दुःख के क्षण आते हैं जब वह परेशानी व कष्टों से घिर जाता है तो उदासी का अनुभव करने लगता है | जब यह उदासी निरंतर बनी रहती है तो उसे अवसाद या डिप्रेशन की बीमारी हो जाती है | तब यह उस व्यक्ति के कार्यों,व्यक्तिगत पारिवारिक व सामाजिक जीवन पर भी अपना दुष्प्रभाव डालती है | यह जन साधारण में पाया जाने वाला एक अत्यंत प्रचलित रोग है | प्रत्येक 100 में से 95 व्यक्ति अपने जीवनकाल में इस रोग से ग्रस्त पाए जाते हैं |
कुछ व्यक्तियों को हर बार सिर्फ डिप्रेशन ही होता है , जबकि अन्य में डिप्रेशन व मेनिया रोग एक के बाद एक कर के उभरते रहते हैं | मेनिया के लक्षण डिप्रेशन से ठीक विपरीत होते हैं | परिस्थितिजन्य डिप्रेशन इन कारणों से हो सकता है,बेरोज़गारी,आर्थिक नुकसान,एकाकी जीवन,परीक्षा में असफलता,पारिवारिक मतभेद,तकरार,सम्बन्ध विच्छेद,परिवार का टूटना विखरना, आत्मीय परिजनों का बिछोह या निधन आदि | डिप्रेशन अकारण भी हो सकता है | बहुधा यह रोग अनुवांशिक होता है | डिप्रेशन की उत्पत्ति के निम्न प्रमुख कारण हैं |
हमारे मष्तिष्क में कुछ विशिष्ट रसायन मौजूद होते हैं जिनका सीधा सम्बन्ध डिप्रेशन अथवा मेनिया रोगों की उत्पत्ति से जुड़ा रहता है,जब रोगी के मष्तिष्क में रसायनों की कमी आ जाती है तो डिप्रेशन के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं और जब मष्तिष्क में इन रसायनों की मात्रा औसत से बढ़ जाती है तो मेनिया नामक रोग की उत्पत्ति होती है | डिप्रेशन के लक्षणों में उदासी अत्यधिक रहती है |
अवसाद,तनाव,डिप्रेशन में रोगी अन्य लोगों को हँसते बोलते देख उन्हें अपनी अक्षमता का एहसास तीव्रता से कचोटता है और वे कष्ट से भी परेशान हो उठते हैं | अतः वे ऐसी परिस्थितियों से बचने की कोशिश करने लगते हैं,और उनकी शिकायत रहती है की वे हंसना,मुस्कुराना भूल गए हैं,और उन्हें छोटी-छोटी बातों में सब्र नहीं होता तुरंत रुलाई आ जाती है | अक्सर आँखे डबडबाई ही रहती हैं उनका किसी कार्य में मन नहीं लगता व कुछ भी अच्छा नहीं लगता | रोगी घोर निराशावादी हो जाता है उसे लगता है की वो कभी ठीक नहीं हो पायेगा |
डिप्रेशन के रोगी में आत्मविश्वाश की कमी होती है| आत्मविश्वाश खोने की वजह से ये किसी कार्य में हाथ डालने से संकोच करते हैं और न ही किसी से मेलजोल पसंद करते हैं | ये रोगी एकांतप्रिय हो जाते हैं | अँधेरे कमरे में सुकून पसंद करते हैं | वे अपने आपको बेकार व गरीब समझने लगते हैं | ऐसे रोगी बहुधा अपराधबोध ग्रस्त हो जाते हैं | उन्हें अपना किया गया हर कार्य गलत हि नज़र आता है,उन्हें लगता है की वे अपनी जिम्मेदारियां सही तरीके से निभाने में कही चूक गए हैं,और हर वक़्त खुद को दोषी ठहराते रहते हैं| उन्हें लगता है की उनके आसपास या परिवार में जो भी बुरा घट रहा है वह उन्ही की गलतियों का परिणाम है | कभी-कभी यह विचार उनके मन में इतने गहरे बैठ जाते हैं की उन्हें किसी भी प्रकार से समझ पाना संभव नहीं होता है| डिप्रेशन के रोगी को अत्यधिक थकान होती है और उन्ह्र रोजमर्रा के कार्य भारी लगने लगते हैं | जैसे की नहाना,धोना,हज़ामत बनाना,तैयार होना,खाना-खाना इत्यादि | कभी-कभी ये रोगी थकान से इतने बेदम हो जाते हैं की अपना जीविकोपार्जन करने में भी खुद को सक्षम महसूस नहीं करते हैं |
शरीर के विभिन्न अंगों में दर्द अथवा कमजोरी महसूस करना,कुछ रोगियों को रात में नींद नहीं आती है,तो कुछ रोगियों की नींद समय से पहले खुल जाती है | कोई-कोई रोगी ज़रूरत से ज्यादा नींद आने की शिकायत करते हैं| भूख की कमी भी इस प्रकार की व्याधि में आ जाती है | डिप्रेशन रोगियों को खाने में स्वाद आना बंद हो जाता है| जिससे बढ़िया से बढ़िया भोजन भी बेस्वाद प्रतीत होता है | रोगी खाना काफी कम कर देते हैं जिससे उनके वजन में गिरावट आ जाती है| इस प्रकार के रोगी में यौन सम्बन्ध में भी अरुचि पायी जाती है | कुछ रोगियों में डिप्रेशन व् मेनिया रोग बारी - बारी से होते रहते हैं |
मेनिया रोग का लक्षण रोगी का प्रसन्नचित्त रहना,अति-उत्साहित स्फूर्ति व ताकत से भरपूर रहना | ज़रा-ज़रा सी बातों में उत्तेजना आ जाना विचारों में तेज़ी आ जाना, शौक बढ़ना,फ़िज़ूलख़र्ची करना,नींद का ज़रूरत से कम हो जाना,अत्यधिक बोलना,हर समय किसी न किसी कार्य में सलंग्न रहना,भूख का बढ़ जाना,यौन इक्छा बढ़ जाती है | डिप्रेशन की स्वाभाविक प्रगति निम्न प्रकार है | एक बार रोग हो जाने पर यह औसतन हर महिने से लेकर साल भर तक चलता रहता है | इलाज लेने पर रोग की अवधि घट कर तीन महीने तक भी रह सकती है अगर समय से पहले इलाज बंद कर दिया जाये तो रोग फिर से उभर जाता है | प्रथम बार यह रोग 40 वर्ष की उम्र के भीतर ही हो जाता है | अमूमन 20 वर्ष की उम्र के आसपास यह रोग कुछ रोगियों में बारम्बार होता है | दूसरी पुनरावृति कुछ-कुछ माह अथवा वर्षों बाद होती रहती है | कुछ रोगियों में यह किसी खास मौसम में प्रतिवर्ष भी हो सकता है | कभी-कभी दीर्घकालिक रूप भी ले सकता है| अतः अवसाद,तनाव,डिप्रेशन का इलाज किसी कुशल मानसिक रोग चिकित्सक से कराने से रोगी के पूर्णतया ठीक होने की पूरी सम्भावना रहती है | अतः डिप्रेशन एक गंभीर रोग है जिसका इलाज पूर्णतया संभव है|
At AyurvediyaUpchar, we are dedicated to bringing you the ancient wisdom of Ayurveda to support your journey toward holistic well-being. Our carefully crafted treatments, products, and resources are designed to balance mind, body, and spirit for a healthier, more harmonious life. Explore our range of services and products inspired by centuries-old traditions for natural healing and wellness.
आयुर्वेदीय उपचार में, हम आपको आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान को समग्र कल्याण की ओर आपकी यात्रा में सहायता करने के लिए समर्पित हैं। हमारे सावधानीपूर्वक तैयार किए गए उपचार, उत्पाद और संसाधन स्वस्थ, अधिक सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए मन, शरीर और आत्मा को संतुलित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। प्राकृतिक उपचार और कल्याण के लिए सदियों पुरानी परंपराओं से प्रेरित हमारी सेवाओं और उत्पादों की श्रृंखला का अन्वेषण करें।