संक्रमित लीवर की देन पीलिया
यकृत हमारे शरीर का एक अति महत्वपूर्ण अंग है | इसका बजन 1.5 किलो तक होता है | यकृत रोग कई प्रकार के होते हैं जैसे- पीलिया,जलोदर,यकृत ट्यूमर ,यकृत कैंसर,यकृतवृद्धि,यकृतसूजन,यकृतक्षय | रक्त की जांच कराने से इन सभी यकृत रोगों का पता चलता है | यकृत की पूरी तरह आधुनिक यंत्रों से पर सब कुछ स्पष्ट हो जाता है | ये जांचे डॉक्टर की सलाह से करवाए|
पीलिया रोग पर विस्तृत वर्णन - यकृत में पित्त बनता है जो पित्ताशय में एकत्रित होता है | यह पित्त पित्तवाहनी द्वारा आंतो में जाकर भोजन में मिलता है | पित्त गहरे पीले रंग का द्रव्य है जो भोजन में उपस्थित घी-तेल-चर्बी जैसे वसायुक्त पदार्थों को पचाता है | यह पित्त शरीर में उपस्थित विषैले पदार्थों के प्रभाव को नष्ट करता है | खाद्य पदार्थों के पाचन में लीवर का बड़ा योगदान है | खाद्य पदार्थों में उपस्थित प्रोटीन,चर्बी,कार्बोहाइड्रेट को यह विशेष तत्वों में बदलकर संचित करता है ताकि शरीर में इनकी कमी होने पर उपयोग किया जा सके | यह अतिरिक्त प्रोटीन को एल्ब्युमिन में,शक़्कर को ग्लाइकोजन में,चर्बी की कोलेस्ट्रॉल में तथा ट्राइग्लसरीन को लिपो प्रोटीन्स में बदल देता है |
पीलिया वायरस से उत्पन्न होने वाला एक यकृत रोग है | यह रोग हैपेटाइटिस वायरस A तथा हेपेटाइटिस वायरस B के कारण उत्पन्न होता है | हेपेटाइटिस वायरस A से पीड़ित व्यक्ति ४०२दिन के अंदर ठीक हो जाता है | हैपेटाइटिस B से पीड़ित व्यक्ति ठीक होने के लिए अधिक समय लेता है| यकृत का निर्माण करने वाली कोशिकाएं रक्त धमनियों व पित्त को ले जाने वाली नलियों से जुडी रहती हैं | यह यकृत में जाकर उसके तंतुओ को नष्ट कर देते हैं | पीलिया में पित्त का निर्माण करने वाली कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं जिससे पित्त वाहनी में पित्त पहुंचाने वाली नलिकाओं में पित्त नहीं पहुंच पाता तो पित्त यकृत शिरा द्वारा रक्त में मिलने लगता है | इस तरह रक्त के साथ पित्त मिलने के कारण पित्त सम्पूर्ण शारीरिक अंगो में पहुँचता है और शरीर पीले रंग का हो जाता है |
पीलिया 2 तरह का होता है एक तो वायरल पीलिया और दूसरा अवरोधजन्य पीलिया | वायरल पीलिया वायरस से फैलता है तथा अवरोधजन्य पीलिया पित्तवाहनी में अवरोध होने से उत्पन्न होता है |
संसार में 1 करोड़ से भी अधिक व्यक्ति पीलिया वायरस को धारण करने वाले हैं, जो कैरियर कहलाते हैं | पीलिया वायरस इन्ही व्यक्तियों में बढ़ता, फलता- फूलता है परन्तु इन्हे कोई हानि नहीं पहुंचाता | यह कैरियर ही पीलिया वायरस को दूसरे मनुष्यों में फैलाकर उन्हें रोगी बनाता है |
कुछ ऐसी औषधियां भी हैं जिन्हे हम अधिकांशतः प्रयोग करते रहते हैं | यह औषधीयां सीधे लीवर को क्षतिग्रस्त करती हैं | समस्त एंटीबायोटिक्स औषधियां,एंटी मलेरियल औषधियां, क्षय रोग व ब्लडप्रेसर को कम करने वाली औषधियां,एंड्रोजिन व एस्ट्रोजन हार्मोन भी लीवर को अत्यंत हानि पहुंचाते हैं | शराब पीने से एसिटल्डिहाईड जैसे विषैले तत्त्व शरीर में पैदा होते हैं जो यकृत को क्षतिग्रस्त करते हैं | क्षतिग्रस्त लीवर वाले मनुष्य में पीलिया शीघ्र पैदा होता है |
पीलिया रोग में पित्त के रक्त में जाने से रोगी के नेत्र,त्वचा,नख,मुख,मल-मूत्र भी हल्दी के रंग के समान पीले हो जाते हैं |
लक्षण - पीलिया के प्रारम्भ में ज्वर,सिरदर्द,कंपकपी,थकाबट आदि लक्षण होते हैं | यह लक्षण तीन से पांच दिन तक रहते हैं| इसके पश्चात भोजन में अरुचि,प्यास,शरीर में दर्द,पेट में जलन,बेचैनी,यकृत के स्थान को छूने पर दर्द,त्वचा का पीला होना,यकृत प्लीहा में विकृति,वृद्धि व क्षय होने लगता है | रक्त में से लाल रक्ताणु कम होने लगते हैं | मूत्र गहरे पीले रंग का होता है | पीलिया जब गंभीर रूप धारण कर लेता है तो खून की उल्टी व अन्य अंगो से खून का निकलना व मानसिक बेहोशी की भी अवस्था आ जाती है |
मूत्र की जांच से गुर्दों के प्रभावित होने पर मूत्र में मवाद के कण व अलव्युमिन मिलता है | मूत्र में और खून में पित्त की मात्रा सामान्य से अधिक मिलने पर पीलिया रोग होता है |
घरेलु उपचार- सर्वप्रथम वैक्टीरिया,वायरस रहित शुद्ध जल व भोजन का सेवन करें|
आसपास की गंदगी को हटाएँ |
पूर्ण विश्राम करें तथा शारीरिक परिश्रम बंद क्र दें |
शराब व नशीले पदार्थों का सेवन तत्काल बंद कर दें|
अगर रोग 40 दिन अधिक पुराना हो गया है,जोड़ों में दर्द व ज्वर और शरीर पर ददोरे,छपाकी के चिन्ह पड़ रहे हैं तो आशंका है की बीमारी गंभीर रूप ले रही है, अतः तुरंत अचे विशेषज्ञ को दिखाएँ |
गर्भवती महिला को पीलिया रोग,गर्भ के 6 माह बाद होने की आशंका अधिक होती है अतः सावधानी रखनी चाहिए |
पीलिया रोगी को ग्लूकोस पानी में मिलाकर पीना चाहिए |
गन्ने का रस भी लाभप्रद है पर गन्ने से रस निकलते समय सफाई न होने के कारण वह संक्रमित हो जाता है अतः रस के स्थान पर गन्ना चूसना चाहिए|
रोगी को तली चीज़ें,मिर्च मसाला,गरिष्ट भोजन, उड़द,राजमा, टमाटर,इमली,चाट,समोसा इत्यादि का प्रयोग नहीं करना चाहिए|
नमक का प्रयोग कम करें|
भोजन में मूंग की दाल,लौकी, परवल,तोरई,टिंडा,चौलाई,बथुआ,आलू,अदरक,पोदीना,धनिया,आवला आदि सुपाच्य आहार का सेवन करें |
मूली की सब्जी व स्वरस अत्यंत उपयोगी है |
आयुर्वेदीय उपचार - आयुर्वेदीय उपचार में देवदाली नस्य का अदभुत प्रभाव आया है | इस नस्य प्रयोग से रोगी के नेत्रों का पीलापन तत्काल नष्ट होता है तथा रक्त में भी पित्त की मात्रा कम हो जाती है | देवदाली के फलों के ऊपरी छिलकों को दूर कर भीतर के जालीदार भाग को 10 मि.ली. जल में कांच के स्वच्छ पात्र में सायंकाल के समय भिगोकर रात भर ओस में रख दें | प्रातः सूर्योदय से पहले पात्र में ऊपर का निथरा हुआ जल लेकर नाक में टपकाएं | इसके लिए रोगी को चारपाई पर लिटा कर प्रयोग करें | नाक में इस रस के जाते ही छींके आती हैं और नाक से पीले रंग का रस निकलना प्रारम्भ हो जाता है,जिससे रोगी के नेत्रों का पीलापन कम हो जाता है | 6-7 दिन बाद यह प्रयोग फिर से कर सकते हैं | इसमें सावधानी यह रखनी है की रोगी शारीरिक रूप से शक्तिशाली हो |
भोजनोपरांत लोहासव,पुनर्नवारिष्ट,रोहितकारिष्ट समान मात्रा में लेकर मिलाकर रखें 25 मि. ली. औषधि और इतना ही जल मिलाकर पी लें | इससे यकृत-प्लीहा-वृक्क का कार्य ठीक ढंग से होता है और WBC वृद्धि होती है | ज्वर,भूख न लगना ,पेट की जलन ठीक हो जाती है |
ताप्यादी लौह 125मि.ग्रा. से 250 मि.ग्रा. तक दिन में 3 बार मूली स्वरस या गोमूत्र से सेवन करें | यह यकृत,प्लीहा,आँतों के सभी रोगों का नाशकर रक्त कणो की वृद्धि करता है| वृक्क शोथ,हृदयरोग, पित्त विकार वायु विकारों को नष्ट करता है |
पीलिया किसी भी कारण से हुआ हो तो भी ताप्यादी लौह अमृत तुल्य कार्य करता है | पीलिया व अन्य सभी यकृत रोगों पर गोमूत्र अकेला भी आश्चर्य जनक कार्य करता है | आयुर्वेद में यकृत रोगों पर गोमूत्र का प्रयोग प्राचीनकाल से सफलता पूर्वक हो रहा है |
आरोग्यवर्धनी वटी 5 ग्राम व नवायस लौह 5 ग्राम दोनों को खरल में घोंट लें | इस मिश्रण की 250 मि.ग्रा. की मात्रा भांगरा स्वरस या मठ्ठे से सेवन करें,लाभ होगा |
गिलोय,कुटकी,द्रोणपुष्पी,भृंगराज,पुनर्नवा पंचांग, सरफोंका को समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण रख लें | 10-15 ग्राम चूर्ण शाम को 200 मि.ली. पानी में भिगों दे | सुबह शाम पीने से भी पीलिया नष्ट होता है | इस क्वाथ के साथ सुबह-शाम 2-2 गोली पुनर्नवा वटी भी सेवन करें|
नाश्ते व भोजनोपरांत लोहासव + रोहितकारिष्ट+ कुमारीआसव+ पुनर्नवारिष्ट 40 मि.ली. की मात्रा में 40 मिली जल मिलाकर सेवन करने से पीलिया नष्ट होता है |
ये सभी पीलिया नष्ट करने में सरल सफल प्रयोग हैं | प्रारंभिक अवस्था में रोगी इनका सेवन क्र निसंदेह स्वास्थ लाभ करेंगे|
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