सफ़ेद दाग
सफ़ेद दाग एक त्वचा रोग है | इसी को ल्यूकोडर्मा(leucoderma),श्वेत कुष्ठ,सफ़ेद कुष्ठ,श्वित्र कुष्ठ इत्यादि नामों से सम्बोधित किया जाता है | यह त्वचा में मेलनिन(melanin) नामक रंजक पदार्थ की कमी के कारण होता है | इस रंजक पदार्थ को malanocytes मेलैनोसाइट्स नामक त्वचा की कोशकाएँ बनाती हैं | जब किसी कारणवश मेलैनोसाइट्स अपने कार्य करना बंद कर देती हैं तो श्वेत कुष्ठ की उत्पत्ति होती है | यह पहले लाल रंग के दाग के रूप में दिखाई देता है,फिर धीरे-धीरे श्वेत कुष्ठ का रूप ले लेता है | सफ़ेद दाग दिखने से शरीर भद्दा दिखने लगता है | इसे समाज में घृणा की दृष्टि से देखते हैं जो की मात्र एक सामाजिक बुराई है | यह संक्रामक रोग नहीं है और न ही इससे किसी प्रकार की हानि होती है |
श्वेत कुष्ठ के कारण
आधुनिक विद्वानों के अनुसार श्वेत कुष्ठ की उत्पत्ति मेलिनोसाइट्स तथा केरेटोसाइट्स की अक्रियाशीलता के कारण होता है तथा रंजक पदार्थ की उत्पत्ति करती है | ये कोशिकाएं काले रंग के लोगों में अधिक तथा गोरे रंग के लोगों में कम होती है | अल्ट्रावॉयलट्स की मौजूदगी में इन कोशिकाओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है और अधिक मेलनिन बनाने लगती है | यही हाल सोरालीन नामक औषधि के खाने तथा लगाने से होता है | एलोपेथिक इलाज का सार यही है | श्वेत कुष्ठ के कारणों का अभी तक निश्चित पता नहीं लग पाया है परन्तु विद्वानों के अनुसार इसके निम्न कारण हो सकते हैं-
रोग से लड़ने की क्षमता में कमी |
न्युरोहार्मोन की कमी के कारण कुष्ठ की उत्पत्ति |
रक्त में मौजूद विषाक्त पदार्थ द्वारा मेलिनोसाइट्स का नष्ट होना अथवा अक्रियाशील होना |
टायरोसिनेज एंजाइम की क्रियाशीलता का रक्त में मौजूद फिनोलिक कम्पाउंड जैसे विषाक्त पदार्थों द्वारा नष्ट किया जाना,जो कि रंजक पदार्थ बनाने में बहुत आवश्यक होता है|
इस रोग की उत्पत्ति का एक मुख्य कारण पेट के कीड़े हैं| अधिकांश रोगियों के पेट में कीड़े होते हैं जिससे अक्सर पेट खराब रहता है तथा रोगी के भोजन का एक हिस्सा यही कीड़े खाते हैं एवं बदले में आँतों में विषाक्त पदार्थ लगातार छोड़ते रहते है जिसमे फिनोलिक कंपाउंड होने की सम्भावना ज्यादा रहती है जो धीमे जहर का काम करती है | इस slow poisining के कारण रोगी में रोग से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और यह ज़हर रक्त की टी-4 कोशिकाओं के साथ ही टायरोसिनेज एंजाइमों के कार्यों में भी बाधा उत्पन्न करता है तथा इनकी कार्यशीलता में कमी हो जाती है जिससे रंजक पदार्थ का बनना बंद हो जाता है |
इसके अतिरिक्त रक्त की कमी का होना,लिवर की गड़बड़ी,पाचनशक्ति कमजोर होना,चक्कर आना,कामला तथा स्त्रियों में मासिक धर्म की गड़बड़ी, पुरुष रोगियों में शुक्राणु की कमी आदि बहुत से कारण इन्ही पेट के कीड़ों की वजह से होते हैं | कभी-कभी श्वेत कुष्ठ की उत्पत्ति जलने अथवा चोट लगने से भी होती है | यह रासायनिक पदार्थ के सम्पर्क से भी हो सकता है जिससे वह हिस्सा सफ़ेद हो जाता है। जैसे स्त्रियों में बिंदी वाले स्थान पर सफ़ेद दाग हो जाता है,जो एक रासायनिक क्रिया का परिणाम है | कुछ लोगों में चमड़े तथा प्लास्टिक ले चप्पल,जूतों इत्यादि के प्रयोग के परिणामस्वरूप भी सफ़ेद दाग हो जाते हैं |
आयुर्वेद के मत से सफ़ेद कुष्ठ के कारण
आयुर्वेद के मतानुसार वात,पित्त,कफ,रस,रक्त,मांस तथा जल इन सातों के बिगड़ जाने से कुष्ठ रोग की उत्पत्ति होती है | कुछ विद्वानों का मत है कि भोजन में साग-सब्जी की कमी,vitamins,minerals अथवा धुप की कमी से यह रोग होता है |
आयुर्वेद में कुष्ठ रोग के 18 प्रकार बताये गए हैं,इन्हे मोटे तौर पर दो भागों में बाटां जा सकता है -
महाकुष्ठ - यह सात प्रकार का होता है - कपाल,औदुम्बर,मंडल,सिध्म,काकण पुण्डरीक तथा ऋष्यजिह |
शूद्र कुष्ठ - गजचर्म,चर्मदल,विचर्चिका,विपादिका,पामा,कच्छु,दद्रु,विष्फोट,किटटभी,अलसक, शतारु ,सफ़ेद कुष्ठ इसमें महाकुष्ठ के वर्गीकरण में आता है |
रोगी का परीक्षण
श्वेत कुष्ठ का बहुत कुछ पता तो सफ़ेद दागों के निरिक्षण से ही हो जाता है पंरतु इलाज से कितना फायदा है यह जानने एवं शोधकार्य हेतु निम्न परीक्षण किये जा सकते हैं -
सम्बंधित त्वचा की बायोप्सी से उस स्थान की मेलिनोसाइट्स कोशिकाओं की क्रियाशीलता का पता लगाया जा सकता है |
रक्त परिक्षण द्वारा रक्त में टायरोसिनेज एंजाइम की कमी का पता लगाया जा सकता है |
विटामिन्स तथा मिनिरल्स की कमी का भी रक्त परीक्षण द्वारा पता लगाया जा सकता है |
भारतीय जड़ी-बूटियों द्वारा चमत्कारिक इलाज
श्वेत कुष्ठ के इलाज की विभिन्न संभावनाएं सभी चिकित्सा पध्दति ने निहित हैं परन्तु वास्तविकता यह है की श्वेत कुष्ठ ठीक होने में या पूर्ण सफलता में काफी समय लगता है | एलोपेथिक इलाज की मुख्य औषधि सोरालीन है | इस औषधि के लम्बे समय के उपयोग से कई अन्य व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं साथ ही साथ यह औषधि पूर्णरूप से सफल नहीं हैं | इसी प्रकार होमियोपैथिक में भी कई औषधियॉं का इसके इलाज में प्रयोग किया जाता है अन्य औषधियों के साथ आर्सेनिक “एम” तथा कोरेलियम “एम” इस रोग की प्रधान औषधियां मानी गयी हैं जो ज्यादातर हफ्ते में केवल एक बार ही इस्तेमाल की जाती है |
आयुर्वेद शास्त्र में श्वेत कुष्ठ के इलाज के लिए कई हर्बल औषधियों का उल्लेख मिलता है | कुछ का आंतरिक तथा कुछ का बाहरी प्रयोग होता है | महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधियां निम्न हैं -
बाहरी प्रयोग
बाकुची बीज 100 ग्राम तथा शुद्ध हरताल 20 ग्राम पीसकर गोमूत्र के साथ संबंधित त्वचा पर लेप करें |
बाकुची का चूर्ण अदरक के रस मे पीसकर लेप करें |
कूठ,मूली के बीज,फूल प्रियंग,सरसों,हल्दी,नागकेसर पानी में पीसकर लेप करें |
अपामार्ग का रस,हल्दी का चूर्ण पानी में पीसकर लेप करें |
दारुहल्दी,मूली के बीज,हरताल,देवदार,नागरबेल,पान तथा शंख के चूर्ण को जल में पीसकर लेप करें |
बावची हरताल,मेनसिल,चोंटली की जड़,चित्रकमूल,गोमूत्र में मिलाकर लेप करें |
काली अपराजिता की जड़ के कल्क का त्वचा पर लेप करें |
बथुए का रस एक गिलास और आधा गिलास तिल का तेल कढ़ाई में गर्म करें और बथुए का रस जलने पर तेल को शीशी में रखें और प्रतिदिन प्रातः- सायें दागों पर लगाएं |
दो टोला बावची के भिगोये हुए बीजों को पीसकर दो बार प्रतिदिन प्रयोग करें |
हल्दी 150ग्राम,स्प्रिट 600 ग्राम मिलाकर धुप में रख कर दिन में तीन बार चिन्हों पर लगाएं|
उड़द की दाल को पाने मे पीसकर या लहसुन के रस में हरड़ घिसकर सफ़ेद दागों पर सुबह-शाम लगाएं |
आंतरिक प्रयोग
आंवला तथा कत्था की छाल 12-12 ग्राम लेकर काढ़ा बनायें,फिर 12 ग्राम बावची के बीजों का चूर्ण बनाकर उक्त काढ़े के साथ पियें या शहद के साथ लें |
वाकुची चूर्ण को शुद्ध कर के उचित मात्रा में प्रयोग से श्वेत कुष्ठ रोग दूर होता है |
बहेड़े की छाल,कठूमर की जड़ इनके क्वाथ में बावची कल्क तथा गुड़ मिला कर पीने से श्वेत कुष्ठ दूर होता है |
कोई भी जड़ी-बूटी,जो खून साफ़ करनेवाली हो,उसके प्रयोग करने से श्वेत कुष्ठ दूर होता है | जैसे - मजिष्ठादि क्वाथ,खदिरारिष्ट इत्यादि|
शरीर की उष्णता समाप्त करने वाली सभी औषधियां एवं जड़ी-बूटी इस रोग को दूर करती है |
अनुसंधानिक अनुभव
असगंध,वायविडंग,आंवला,बाकुची,खैर,चंदन,कवावचीनी,रसमणिक्य,सतगुडची,प्रवालपिष्टि, हरताल भस्म,कामदुधारस,पितान्तक रस,मुक्तापिष्टी,मिश्री एवं त्रिफला इत्यादि | इस सूत्र के द्वारा जो आयुर्वेदिक औषधि तैयार की गयी है | इसका नाम “ल्युकोवेट-एच” रखा गया है
यह औषधि आयुर्वेदिक औषधि की बड़ी दुकानों से उपलब्ध हो सकती है | उक्त औषधि के द्वारा हज़ारों रोगियों को लाभ प्राप्त हुआ है तथा सैंकड़ों ने इससे रोग मुक्ति पा ली है |
रोगी को भोजन में सावधानी तथा उचित मात्रा में संतुलित आहार इलाज का एक महत्वपूर्ण पहलू है | यदि कुष्ठ रोगी गर्म तासीर का भोज्य पदार्थ इस्तेमाल करता है | जैसे खटाई,गरम मसाले,लाल मिर्च,हींग,लहसुन,मांस मछली इत्यादि तो रोग पर नियंत्रण पाना कठिन हो जाता है और कभी-कभी रोग ठीक भी नहीं होता | इसके विपरीत यदि ठंडी तासीर का भोज्य पदार्थ जैसे आंवले का मुरब्बा,धनिया,गुलकंद,गुलाब का शर्बत,गरी,शिकंजी,खीरा,ककड़ी,पेठा,सेव,केला का प्रयोग करें तो रोग ठीक होने में कम समय ही नहीं लगता बल्कि कभी-कभी रोगी बिना इलाज के भी रोग ठीक हो जाता है |
इसके अलावा रोगी को पेट साफ़ करना अत्यंत आवश्यक है | अक्सर ऐसे रोगियों के पेट में कीड़े पाए जाते हैं तथा लिवर ख़राब हो जाता है और खून की कमी हो जाती है जिससे रोग में मुक्ति पाना कठिन होता है | ऐसी समस्याओं के निदान हेतु पेट के कीड़े मारने की एलोपेथिक औषधि का प्रयोग आवश्यक हो जाता है | आयुर्वेदिक औषधियों में कृमिकुठार रस या क्रिमोला-एच का प्रयोग किया जा सकता है | जिन मरीजों का लिवर खराब हो गया हो उन्हें लिवर टॉनिक जैसे लिव-52,लिवोसीन का प्रयोग करने से इस रोग का निदान किया जा सकता है| पेट साफ़ रखने के लिए एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गर्म दूध या पानी से सोते समय लेने से इस समस्या में ज्यादातर आराम हो जाता है | यदि कब्ज अधिक हो तो कायम चूर्ण या मृदु विरेचन वटी का इस्तेमाल किया जा सकता है |
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