एक्जिमा की प्राकृतिक चिकित्सा
एक्जिमा किसी दूसरे रोगी के संपर्क में आने से होता है | यदि किसी स्त्री-पुरुष,किशोर या प्रौढ़ को एक्जिमा हो जाये तो फिर वर्षों तक उसे पीड़ित कर सकता है | भोजन में लापरवाही और उचित चिकित्सा नहीं हो पाने के कारण एक्जिमा लम्बे समय तक त्वचा पर बना रहता है | किसी औषधि से एक्जिमा को दबा दिया जाये तो थोड़े दिनों बाद फिर से उभर जाता है | चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार एक्जिमा रोग दो तरह का हो सकता है | एक-शुष्क एक्जिमा, दूसरा रक्तस्त्रावी एक्जिमा | त्वचा के रोमकूपों से पसीने के साथ दूषित तत्व निष्कासित होते रहते हैं | लेकिन जब त्वचा द्वारा दूषित तत्व नहीं निकल पाते हैं और शरीर में ही एकत्र होतें रहते हैं तो एक्जिमा के रूप में त्वचा पर फूटते हैं |
एक्जिमा की उत्पत्ति :-
एलर्जी के कारण कुछ स्त्री पुरुष एक्जिमा के शिकार होते हैं | ऐसे स्त्री पुरुष विभिन्न औषधियों के सेवन से एक्जिमा से कुछ समय के लिए निरोग हो जाते हैं,लेकिन जैसे ही वे एलर्जिक पदार्थों के संपर्क में आते हैं तप एक्जिमा की विकृति फिर दिखाई देने लगती है | एक नवयुवती के हाथ पर एलर्जी के कारण एक्जिमा होता है | उस नवयुवती को गुलाब के फूल को स्पर्श करती है तो उसके हाथ पर एक्जिमा फुट पड़ता है |
एक्जिमा रोग के प्रारम्भ में कान,गर्दन,हाथ के पिछले भाग में,पिंडली,ऊँगली,जांघ आदि पर नन्ही-नन्ही फुंसियां दिखाई देती हैं | इनमे तीव्र खुजली होती है | जोर से खुजलाने पर फुंसियों से दूषित स्त्राव निकलता है | जब शुष्क एक्जिमा होता है तो खुजलाने के कारण त्वचा की परतें उभरने लगता है
जब एक्जिमा से दूषित तत्वों का स्त्राव होता है रोगी को बहुत परेशानी होती है क्योंकि स्त्राव के कारण वस्त्र ख़राब होते हैं | एक्जिमा में तीव्र खुजली होने पर रोगी ऑफिस में,किसी पार्टी में अपने परिचितों के बीच बहुत आत्मग्लानि अनुभव करता है| स्त्रियों को जाँघों के आसपास एक्जिमा हो जाने पर खुजली के समय अत्यंत संकोच की परिस्थिति से गुजरना पड़ता है | एक्जिमा से त्वचा अधिक शुष्क,खुरदुरी,मटमैली हो जाती है | चिकित्सा में लापरवाही से तीव्र जलन होती है | बीड़ी,सिगरेट,चाय,काफी,शराब पीने से एक्जिमा अधिक तीव्र होता है |
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार मधुमेह रोग,अजीर्ण,संधिशूल,वात विकार, आदि रोगों से पीड़ित स्त्री-पुरुष एक्जिमा के अधिक शिकार होते हैं | आयुर्वेद चिकित्स्कों के अनुसार तेल-मिर्च,उष्ण मसालों व अम्ल रस से बने खाद्य पदार्थों के सेवन से एक्जिमा की अधिक उत्पत्ति होती है | मांस,मछली,दूध,दही,घी,मधु आदि का एक साथ सेवन करने वाले में भी एक्जिमा की अधिक उत्पत्ति होती है | प्रदूषित वातावरण में रहने से एक्जिमा अधिक होता है |
एक्जिमा की प्राकृतिक चिकित्सा :-
प्राकृतिक चिकित्सा में किसी औषधि का उपयोग नहीं किया जाता | प्राकृतिक तरीकों से रक्त में दूषित तत्वों को निष्काषित कर के रोगी को एक्जिमा से मुक्त किया जाता है | दूषित तत्वों को मल-मूत्र के साथ शरीर से निष्काषित किया जाता है |
एक्जिमा के अधिकांश रोगी कब्ज से पीड़ित होते हैं | कोष्ठवद्धत्ता के कारण शरीर मल के अधिक समय तक एकत्र रहने से रक्त अधिक दूषित होता है | प्राकृतिक चिकित्सा में सबसे पहले कोष्ठवद्धत्ता(कब्ज) को नष्ट कर के रक्त को शुद्ध किया जाता है |
कब्ज को नष्ट करने के लिए रोगी को एक लीटर हलके गर्म जल में नीबू का रस मिलाकर एनिमा लेना चाहिए | सप्ताह में 2-3 बार एनिमा लेने से कब्ज का निवारण होता है | कब्ज के निवारण के साथ रोगी को दिन में कई बार नीबू का रस मिला जल लेना चाहिए | रोगी को दिनभर में 5-6 लीटर जल पीना चाहिए | जल पीने से मूत्र निष्कासन के साथ पेट के विजातीय तत्व निष्कासित होने से रक्त शुद्ध होता है |
शुद्ध वायु जब श्वाश के साथ शरीर में जाती है तो रक्त के साथ मिलकर उसे शुद्ध करती है | फेंफड़ों में रक्त की शुद्धि होती है | पार्क की शुद्ध व शीतल वायु घूमने-फिरने व बैठकर श्वाश लेने से अधिक शुद्ध वायु शरीर में पहुँचती है और फेंफड़े उस वायु की सहायता से अधिक रक्त को शुद्ध करते हैं | रक्त के साथ मिलकर शुद्ध वायु शरीर के विभिन्न अंगो में पहुंचकर शक्ति व स्फूर्ति प्रदान करती है | भ्रमण के बाद शरीर में नयी शक्ति का अनुभव होने लगता है |
व्यायाम बहुत आवश्यक होता है | एक्जिमा के रोगी को पालतू कुत्ते के साथ थोड़ी सावधानी रखनी चाहिए | किसी पशु-पक्षी से एलर्जी होने की स्थिति में कुत्ते के एलर्जी से एक्जिमा रोगी को हानि की सम्भावना बढ़ जाती है | ऐसे में सूती कपड़ों के दस्तानो का इस्तेमाल करना चाहिए |
एक्जिमा से पीड़ित स्त्री-पुरुष को सिर पर गीला तौलिया बाँध कर,प्रतिदिन धुप स्नान करना चाहिए| 25-30 मिनट धुप स्नान करने से रोग निवारण में अधिक लाभ मिलता है | धूप स्नान से अधिक पसीने निकलने से शरीर के दूषित तत्व पसीने के साथ बाहर निकल जाते हैं |
एक्जिमा के रोगी को हथेलियों से शरीर के विभिन्न अंगों को रगड़-रगड़कर स्नान की क्रिया पूरी करना चाहिए | इस क्रिया से शरीर में रक्त संचार की गति तीव्र होती है | स्विमिंग पूल व नदी में तैरने से शारीरिक श्रम होता है | शरीर की उष्णता नष्ट होती है रक्त शुद्ध होता है |
कटिस्नान :-
एक्जिमा में कटिस्नान से रोगी को भरपूर लाभ होता है | कटिस्नान के लिए एक बड़े टब में जल भरकर उसमे पाँव कर फर्श पर रखते हुए बैठना चाहिए | टब में इतना जल अवश्य होना चाहिए की बैठने के बाद शरीर का नाभि तक का भाग जल में डूबा रहे | दोनों पाँव जल में डूबे रखना चाहिए |
टब में बैठकर एक छोटे खुरदुरे तौलिये को जल में भिगोकर नाभि के नीचे के भाग को धीरे-धीरे रगड़ना चाहिए | पहले दाएं से बाएं ओर रगड़ें ,फिर बाएं से दाएं | यह क्रिया 10 मिनट तक करे | धीरे-धीरे यह क्रिया 30 मिनट तक बढ़ा सकते हैं | कटिस्नान के समय ऊपरी भाग को किसी कम्बल व ऊनी कम्बल से ढंककर अधिक लाभ उठा सकते हैं | कटिस्नान के बाद गीले भाग को अच्छी तरह पोंछ कर बिस्तर पर आराम करना चाहिए |
कटिस्नान खाली पेट करना चाहिए | कटिस्नान से कब्ज,अजीर्ण,अरुचि व ज्वर आदि रोग विकार सरलता से नष्ट होते हैं | कटिस्नान से रक्त शुद्ध होता है | रोगी को अधिक शक्ति व स्फूर्ति अनुभव होती है | कटिस्नान के बाद रोगी को नाभि के नीचे गीली मिटटी की पट्टी रखनी चाहिए | गीली पट्टी से आंतो को शीतलता मिलती है | आंतो की शक्ति विकसित होने से मल का तेजी से निष्कासन होता है |
एक्जिमा के रोगी को दो- तीन सप्ताह स्टीमबाथ अवश्य लेना चाहिए | बाष्प स्नान से शरीर के दूषित तत्व निष्काषित होते हैं | त्वचा अधिक सक्रिय होती है | एक्जिमा के रोगी को प्रतिदिन दो-तीन बार एक्जिमा पर गीली पट्टी रखकर सेंकना चाहिए | गीली पट्टी से त्वचा के दूषित अंश नष्ट होते हैं | गीली पट्टी जब गर्म होने लगे तो त्वचा से हटा लेना चाहिए | एक्जिमा वाले भाग में अधिक उष्णता व जलन अनुभव होने पर मिट्टी की पट्टी रखनी चाहिए | मिट्टी की पट्टी से एक्जिमा का निवारण होता है |
आहार-विहार :-
प्राकृतिक चिकित्सा में आहार का सबसे अधिक महत्व होता है | एक्जिमा के निवारण उपवास करने से अधिक लाभ होता है | उपवास के दिन में रोगी को नीबू का रस मिला जल दिन में कई बार पीना चाहिए | संतरे,मौसम्मी,अनार,गाजर,सेब का रस भी पी सकते हैं | उपवास से शरीर की उष्णता नष्ट होती है |
एक्जिमा के रोगी को अंडे,मांस,मछली,चाय काफी,शीतल पेय,बीड़ी,सिगरेट,प्याज,अदरक,लहसुन,मूली,इमली का सेवन बंद कर देना चाहिए | उष्ण मिर्च-मसालों व अम्ल रस से बने खाद्य पदार्थ,फ़ास्ट-फ़ूड बिलकुल बंद कर देना चाहिए | रोगी को हरी सब्जी व फलों का सेवन अधिक करना चाहिए | भोजन के साथ खीरा,ककड़ी,गाजर,चुकंदर,सलाद अवश्य खाना चाहिए | प्रातः काल के नाश्ते में अंकुरित अनाज का सेवन करने से बहुत लाभ होता है | हर रोगी को प्रतिदिन गाजर का रस पीने से अधिक लाभ होता है |
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