मनुष्य के शरीर को लम्बाई में सिर से लेकर पैर तक के हिस्से को दो बराबर भागों में बाटने पर एक हिस्सा बायां भाग तथा दूसरा हिस्सा दायां भाग कहलाता है | इन दोनों भागों के किसी भी एक पक्ष की चेष्टाओं के नष्ट होने पर उसे पक्षाघात या अर्धंगबात कहते हैं| साधारण भाषा में इसे लकवा कहते हैं
कारण- आयुर्वेद के मत से वात (वायु)को प्रकुपित करने वाले आहार विहार का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से वात दोष प्रकुपित होता है | यह प्रकुपित वायु शरीर के किसी भी एक पक्ष में आश्रित होकर उस पक्ष की शिराओं तथा स्नायुओं को सुखाकर संधिबन्धनों को शिथिल करके शरीर के उस भाग की चेष्टाओं को नष्ट कर देता है | इसे ही पक्षाघात कहते हैं | इस रोग में वाणी का स्तम्भ(बोली का बंद हो जाना) हो जाता है |
इस रोग में मष्तिष्क की भी विकृति होती है | आधुनिक चिकित्सा के अनुसार इसे सम्पूर्ण रूप से मस्तिष्क की विकृति के कारण होने वाला रोग बताया गया है | शरीर की चेतना व चेष्टा का नियंत्रण मस्तिष्क के द्वारा ही सम्पादित होता है | अतः जब उसमे विकृति होती है ,तब पक्षाघात होता है |
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मस्तिष्क में यह विकृति उर्ध्व चेष्टावह नाड़ी कंदाणुओ के घात के कारण होती है | इन कंदाणुओ से प्रसूत तथा निसृत नाड़ी सूत्र सुषुम्ना शीर्ष से आकर एक-दूसरे को पार कर के विपरीत पार्श्व में चले जाते हैं | अर्थात दाएं भाग से आये नाड़ी सूत्र बाएं भाग में तथा बाएं भाग से आये नाड़ी सूत्र दांये भाग में चले जाते हैं | अतः जब मस्तिष्क के दाएं भाग में विकृति होती है तो बाएं भाग का पक्षाघात होता है तथा जब बाएं भाग में विकृति होती है तो दाएं भाग का पक्षाघात होता है |
पक्षाघात होने का एकमात्र कारण नाड़ी तंतुओ का विनाश होना है | नाड़ी तंतुओ के विनाश तथा उनमे अबरोध होने के कारण निम्न हैं -
कुछ विशिष्ट रोग - सन्यास,मूर्च्छा,तीव्र ज्वर ,रक्त भार का अधिक या कम होना,मस्तिष्क के अबुर्द,ह्रदयरोग,वृक्कों के रोग,वृद्धवस्था,सुषुम्ना तथा मस्तिष्क पर चोट लगने से पक्षाघात होता है |
विष का संचरण - तीव्र संक्रामक रोगों के विष का संचार यदि मस्तिष्क तक हो जाए,तो वहां की धमनियों में क्षत होने से पक्षाघात हो सकता है | गांजा,चरस,शराब,कुचला,संखिया,तीव्र,एंटीबायोटिक औषधियां,धतूरा तथा सीसे का विष आदि के फलस्वरूप भी पक्षाघात हो सकता है |
उपरोक्त कारणों से मस्तिष्कगत रक्त वाहनियों में क्षत होने से उत्पन्न रक्तस्त्राव मस्तिष्क के उन-उन भागों में अत्यधिक अबरोध उत्पन्न कर देता है |
रक्त वाहनियों की निम्न विकृतियों से भी रक्त का अवरोध होने से नाड़ी तंतुओ का विनाश होने से पक्षाघात होता है|
रक्तवाहनीगत घनस्र्ता (Thrombosis)
अंतःशल्यता (Embolism)
धमनी संकोच ( Angio spasm)
पक्षाघात के लक्षण - इस रोग में जिस पक्ष का पक्षाघात हुआ है,उस पक्ष के सभी अंगो की चेष्टा नष्ट हो जाती है | रोगी की बोलने की शक्ति भी अवरुद्ध हो जाती है | शरीर के जिस भाग का पक्षाघात हुआ हो उस भाग के अंगों में सुई चुभोने या आघात करने पर रोगी की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती | वह भाग संज्ञाहीन हो जाता है या सीधे शब्दों में स्पर्शज्ञान नष्ट हो जाता है | प्रायः यह देखा गया है कि प्रारम्भ में मूर्च्छा या तीव्र ज्वर होने के बाद पक्षाघात होता है | कभी-कभी पक्षाघात होने के पहले सिर में तीव्र शूल होता है,गर्दन में जकडाहट होती है तथा कभी-कभी चक्कर आने के बाद, पसीना निकलने के बाद या उल्टी होने के बाद पक्षाघात होता है |
पक्षाघात का निश्चित निदान करने के लिए रोगी के आक्रान्त भाग की टांग को ऊपर उठाकर छोड़देने पर वह एकदम से नीचे गिर जाती है | रोगी के शरीर के पक्षाघात वाले सम्पूर्ण भाग में सुन्नता रहती है| उस भाग के अंगो में किसी तरह की हलचल नहीं होती|
पक्षाघात रोग प्रायः एक ही प्रकार का होता है किन्तु चिकित्सा की दृष्टि में उसके तीन भेद दिखाई देते हैं - (1) धीरे-धीरे उतपन्न होने वाला पक्षाघात
(2) अकस्मात उत्पन्न होने वाला पक्षाघात (3) अस्थायी,पक्षाघात जो 2-4 दिन अथवा 2-4 घण्टों के पश्चात् चकित्सा करने पर या बिना चिकित्सा के ही ठीक हो जाता है,किन्तु अस्थायी पक्षाघात के फिर से हो जाने की सम्भावना अधिक रहती है|
पक्षाघात की साध्यासाध्यता - यह रोग हमेशा कष्टसाध्य होता है | ठीक हो जाने के बाद भी कभी-कभी रोगी के किसी न किसी अंग पर थोड़ा बहुत प्रभाव वाकी रह जाता है | बहुत कम रोगियों को पक्षाघात में पूरा लाभ होता है |
जो पक्षाघात केवल वायु के दोष से होता है, वह कष्टसाध्य है | पित्त या कफ दोष के अनुबंध वाला पक्षाघात साध्य तथा धातुक्षय के कारण होने वाला पक्षाघात असाध्य होता है | धातुओं का क्षय होने से शरीर की स्वाभविक शक्ति एक निश्चित परिमाण में रहने पर ही उसकी सहायता से औषधियाँ भी कार्य करती हैं | इस स्वाभाविक शक्ति के नष्ट हो जाने से औषधियां का भी कोई प्रभाव नहीं होता है,इसलिए धातुक्षयजन्य असाध्य होता है |
मधुमेह,मूर्च्छा,मस्तिष्क रोग से पीड़ित, वृद्ध,दुर्बल एवं वात प्रकृति के व्यक्तियों को होने वाला पक्षाघात भी असाध्य होता है |
चिकित्सा सिद्धांत - पक्षाघात के रोगी को सबसे पहले स्नेहन,स्वेदन कराकर स्नेह (तेल) से युक्त विरेचन कराना चाहिए | इसके पश्चात रोगी को बढ़ाने वाली तथा वातनाशक औषधियों का प्रयोग करना चाहिए | पक्षाघात वाले अंगो की वातनाशक तेल से मालिश करना चाहिए | जिन अंगों का घात हुआ है ,उन अंगों को हल्का व्यायाम कराना श्रेयष्कर होता है | पक्षाघात से आक्रांत हाथ एवं पैर शरीर से सटकर नहीं रहें,इसलिए बीच में तकिया रख देना चाहिए पक्षाघात व्याधि में एनिमा देना भी सर्वोत्तम होता है |
औषध चिकित्सा - पक्षाघात से पीड़ित रोगी की शारीरिक शक्ति तथा रोगी की स्थिति के अनुसार अजमोदादि चूर्ण,सोंठ का चूर्ण, श्रंग भस्म,योगराज गुग्गुलु ,महायोगराज गुग्गुलु,सिंहनाद गुग्गुलु,एकांगवीर रस,वृहत वात,चिंतामणि रस,योगेंद्र रस,दशमूल काढ़ा,अश्वगंधारिष्ट,दशमूलारिष्ट,माषबलादि,क्वाथ,ब्राम्ह रसायन,एरंड पाक आदि औषधियों का प्रयोग करने के साथ- साथ आक्रांत अंगों में नारायण तेल,महानारायण तेल,महाभाष तेल आदि की मालिश करना लाभकारी है |
पथ्य :- हल्का,जल्दी पचने वाला आहार यथा गेंहू या जौ की चपाती,अरहर मूंग की दाल,पुराने चावल का भात(अल्प मात्रा में ),खिचड़ी,परवल,पपीता आदि फल या फलों का रस,गाय का दूध आदि का सेवन करना पक्षाघात के रोगी के लिए लाभदायक है |
अपथ्य :- भारी,देर से पचने वाला, चना,उड़द,आलू,मटर,राजमा,सेम,फूलगोभी,बरबटी,अरबी,तथा अन्य कंद,मिर्च-मसालेदार,फ्रिज में रखे ठन्डे पदार्थ,ठंडी हवा का सेवन,सभी तरह की खटाई तथा भैंस के दूध का सेवन करना पक्षाघात के रोगी के लिए हानिकारक होता है |
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