"पुनर्नवा (Punarnava): लीवर और किडनी के लिए चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि"

Apr 01, 2025
आयुर्वेद ज्ञान
"पुनर्नवा (Punarnava): लीवर और किडनी के लिए चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि"

पुनर्नवा - पुनर्नवा,साटि या विषखपरा के नाम से विख्यात  यह वनस्पति वर्षा -ऋतू  में  बहुतायत से पायी  जाती है | शरीर  की आंतरिक एवं  बाह्य सूजन को दूर करने के लिए यह अत्यंत उपयोगी है | 


यह तीन प्रकार की होती है - सफ़ेद,लाल एवं काली | काली पुनर्नवा प्रायः देखने में नहीं आती | पुनर्नवा की सब्जी शोथ (सूजन ) - नाशक,मूत्रल तथा स्वास्थवर्धक है | 


पुनर्नवा कड़वी,उष्ण,तीखी,कसैली,रूच्य,अग्निदीपक,रुक्ष,मधुर,खारी,सारक,मूत्रल एवं ह्रदय के लिए लाभदायक है | यह पांडुरोग,विषदोष एवं शूलका भी नाश करती है | 


पुनर्नवा- औषधीय प्रयोग 


  1. नेत्रों की फूली - पुनर्नवा की जड़ को घी में घिसकरनेत्र में लगाने से लाभ होता है | 

  2. नेत्रों की खुजली- पुनर्नवा की जड़ को शहद में घिसकर आंजने  से लाभ होता   है |

  3. नेत्रों से पानी गिरना - पुनर्नवा की जड़ को शहद में घिसकर आँखों में लगाना लाभदायक है |

  4. रतौंधी - पुनर्नवा की जड़ को कांजी  में घिसकर आँखों में आंजना लाभकारी है  | 

  5. खूनी बवासीर - पुनर्नवा की  जड़ को हल्दी के काढ़े में देने  से लाभ होता है | 

  6. पीलिया- पुनर्नवा के पंचाग को शहद एवं मिश्री के साथ ले अथवा उसका रस या काढ़ा पियें | 

  7. मष्तक रोग एवं ज्वर रोग - पुनर्नवा के पञ्चांग का 2 ग्राम चूर्ण 10 ग्राम घी एवं 20 ग्राम शहद में प्रातः-सायं खाने से  लाभ होता है | 

  8. जलोदर - पुनर्नवा की  जड़ के चूर्ण को श हद के साथ खाने से लाभ होता है |

  9. सूजन - पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा पीने एवं सूजन पर लेप करने से लाभ होता है |

  10. पथरी- पुनर्नवा को दूध में उबालकर सुबह - शाम पीना चाहिए |

  11. विष - (A) चूहे  का विष - सफ़ेद पुनर्नवा-मूल का 2-2 ग्राम चूर्ण आधे ग्राम शहद के साथ  दिन में बार लेने से लाभ होता है | 

  (B) पागल कुत्ते का  विष - सफ़ेद पुनर्नवा के मूल का रस 25 से 50 ग्राम, 20 ग्राम घी  में मिलाकर रोज पियें|


  1. विद्रधि (फोड़ा)- पुनर्नवा के मूल का काढ़ा पीने से कच्चा फोड़ा भी मिट जाता है | 

  2. अनिद्रा - पुनर्नवा के मूल का क्वाथ 100 मिलीलीटर दिन में दो बार पीने से निद्रा अच्छी आती है |

  3. सन्धिवात - पुनर्नवा के पत्तों की भाजी,सोंठ डालकर खाने से लाभ होता है | 

  4. विलम्बित प्रसव- मूढगर्भ - थोड़ा तिलका तेल मिलाकर पुनर्नवा के मूल का रस,जननेंद्रिय में लगाने  से रुका हुआ बच्चा तुरंत बाहर आ जाता है |

  5. गैस - पुनर्नवा  के  मूल का चूर्ण  2 ग्राम,हींग आधा ग्राम  तथा काला नमक 1 ग्राम गरम पानी से लें | 

  6. मूत्रावरोध - पुनर्नवा का 40 मिली रस अथवा उतना ही काढ़ा पिए | पेडू पर पुनर्नवा के पत्ते बफाकर बांधें ,1 ग्राम पुनर्नवाक्षार गर्म पानी के साथ पीने से फायदा होता है | 

  7. खूनी बवासीर - पुनर्नवा के मूल को पीसकर फ़ीकीछाछ 200 मिली या बकरी का दूध २०० मिली के साथ पियें | 

  8. वृषण-शोथ - पुनर्नवा का मूल दूध में घिसकर लेप करने से वृषण की सूजन मिटती है | 

  9. ह्रदय रोग - ह्रदय रोग के कारण सूजन हो जाये तो पुनर्नवा के मूल का 10 ग्राम चूर्ण और अर्जुन के छाल का 10 ग्राम चूर्ण 200 मिली पानी में काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीना चाहिए | 

  10. श्वाश(दमा) - भौंरगमूल चूर्ण 10 ग्राम और पुनर्नवा चूर्ण 10 ग्राम को 200 मिली पानी में उबालकर काढ़ा बनायें | जब 50 मिली बचे तब उसमे आधा ग्राम शृंगभस्म डालकर सुबह-शाम पियें | 

  11. रसायन प्रयोग - हमेशा स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए रोज सुबह पुनर्नवा  के मूल का या पत्ते का दो चमच्च रस पियें | 

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