यह एक बेहद संक्रामक व जानलेवा रोग है | इस रोग को “हयड्रोफोबिया” लाइसा व पागलपन आदि कहते हैं | वैसे तो यह जानवरों को होने वाला रोग है लेकिन रेबीजग्रस्त पशुओं के काटने से यह रोग मनुष्यों को भी हो जाता है | प्रायः यह रोग पागल कुत्ते के काटने से होता है |
कारण - यह रोग “रहेब्डो वायरस” से होता है | ये वायरस रक्त में मौजूद नहीं होते , केवल तंत्रिकातंत्र को नुकसान पहुंचाकर शरीर को प्रभावित करते हैं |
पागल कुत्ता व अन्य जानवरों में इस रोग के वायरस मौजूद रहते हैं,जब रेबीजग्रस्त जानवर किसी मनुष्य काटता है तो उसकी लार में मौजूद वायरस मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और उसी से यह रोग फैलता है | मनुष्य के शरीर पर लगी चोट,खरोच व घाव की जगह पर रोगग्रस्त पशु के लार लग जाने से भी यह रोग फैलता है| प्रायः कुत्ते व अन्य जानवर अपने नाखूनों को चाटा करते हैं जिससे रेबीज़ के विषाणु लार से नाखूनों में पहुंच जाते हैं और जब रेबीजग्रस्त जानवर किसी को खरोच लेता है तो रेबीज़ के विषाणु मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं अतः खरोचने मात्र से भी यह रोग हो जाता है |
रोग के लक्षण प्रकट होने की अवधि - रेबीजग्रस्त जानवर के मनुष्य को काटने के बाद रोग के लक्षण नज़र आने की अवधि के विषय में निश्चित रूप से नहीं बताया जा सकता है वैसे यह अवधि 9 दिन से सालभर की भी हो सकती है ,यह इस बात पर निर्भर करता है की पशु ने शरीर के किस भाग पर काटा है , घाव में लार की मात्रा कितनी पहुंची है घाव कितना गहरा है एवं काटने के बाद प्राथमिक उपचार किया गया है की नहीं ? घाव सिर के जितने करीब होता है उतना ही शीघ्र रोग के लक्षण जाहिर होते हैं क्योकि विषाणु को मष्तिष्क तक पहुंचने में समय कम लगता है | यदि निचले भाग में काटता है तो लक्षण देर दिखाई देते है,क्योकि विषाणु को मष्तिष्क तक पहुंचने में अधिक समय लगता है | इसी प्रकार अगर घाव कम गहरा है या घाव में लार की मात्रा कम पहुँचती है या काटने के बाद प्राथमिक उपचार सही ढंग से होता है तो लक्षण काफी देर से जाहिर हैं | वैसे जानवर के काटने के प्रायः 1 से 3 माह के भीतर ही इस रोग के लक्षण प्रकट हो जाते हैं और रोग के लक्षण जाहिर होने के १० दिनों अंदर रोगी की मौत हो सकती है |
रोगग्रस्त होने पर उत्पन्न लक्षण - पशु के काटने के बाद कटे हुए स्थान पर जलन व झनझनाहट महसूस होना,बुखार होना,जी मचलाना, हाथ पैर में दर्द होना इस रोग के प्रारंभिक लक्षण होते हैं उसके बाद मष्तिष्क ज्वर जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है तथा सांस लेने में भी कठिनाई होने लगती है | रोगी उत्तेजित हो जाता है,स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है,सिरदर्द बढ़ने लगता है | शरीर के मांशपेशियों में खिचाव आने लगता है | रीढ़ की हड्डी के चारों ऒर की मांशपेशियां अकड़ जाती हैं जिसके कारण वह धनुष की तरह टेढ़ा हो जाता है | उसे दौरे पड़ने लगते हैं | रोगी को तेज़ प्यास लगती है लेकिन वह पानी नहीं पी पाता,क्योंकि पानी देखते ही गले,सीने,साँसमार्ग की मांशपेशियां इतनी ज़ोर से अकड़ती हैं की उसके गले में दर्द होने लगता है | वह चाहकर भी पानी नहीं पी पाता| मुँह से झाग आना आँखों से आंसू,लार टपकना अधिक पसीना आना आदि भी इस रोग के लक्षण होते हैं | विषाणु के कारण मष्तिष्क पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता है और रोगी कोमा की हालत में पहुंच जाता है |
प्राथमिक उपचार - प्राथमिक उपचार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है | यदि कोई पागल जानवर किसी को काट ले तो घाव को कई बार साबुन से खूब अच्छी तरह धो देना चाहिए ताकि घाव पर लगी जानवर की लार धुल जाये | लार धूल जाने से रेबीज़ रोग से ग्रस्त होने की सम्भावना काफी कम हो जाती है घाव पर कोई एंटीसेप्टिक क्रीम लगा दें और उसके बाद रोगी को अस्पताल ले जाकर टीके लगवाने का प्रबंध करें |
At AyurvediyaUpchar, we are dedicated to bringing you the ancient wisdom of Ayurveda to support your journey toward holistic well-being. Our carefully crafted treatments, products, and resources are designed to balance mind, body, and spirit for a healthier, more harmonious life. Explore our range of services and products inspired by centuries-old traditions for natural healing and wellness.
आयुर्वेदीय उपचार में, हम आपको आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान को समग्र कल्याण की ओर आपकी यात्रा में सहायता करने के लिए समर्पित हैं। हमारे सावधानीपूर्वक तैयार किए गए उपचार, उत्पाद और संसाधन स्वस्थ, अधिक सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए मन, शरीर और आत्मा को संतुलित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। प्राकृतिक उपचार और कल्याण के लिए सदियों पुरानी परंपराओं से प्रेरित हमारी सेवाओं और उत्पादों की श्रृंखला का अन्वेषण करें।