गेंहू के जवारे- एक जीवंत आहार
मनुष्य स्वाभाविक रूप से शाकाहारी है | पहले वह अपना आहार नैसर्गिक रूप में ही ग्रहण करता था| पकाकर खाना तो उसने सभ्यता के विकास के साथ सीखा है | यही कारण है कि आंते पके हुए आहार की अभ्यस्त बन गयी हैं ,किन्तु इससे पर्याप्त पोषक तत्व न मिलने के कारण हम में से अधिकांश को समय से पूर्व ज़रा- जीर्णता के साथ ही अनेकानेक बीमारियों का भी शिकार बनना पड़ रहा है | प्रख्यात आहारविद गहेन्स एंडर्सन के कथनानुसार,यदि इस भूल को सुधारकर प्राकृतिक आहार की तरफ लौटा जा सके तो कोई कारण नहीं की स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन का लाभ न उठाया जा सके | अनुसन्धानपूर्ण अपनी कृति - “द न्यू फ़ूड थेरेपी” में उन्होंने कहा हैकि वैज्ञानिक खोजों एवं परिक्षण द्वारा यह सिद्ध हो गया है की कच्चे अन्न,फल एवं सब्जियां सूर्य किरणों की शक्ति को अवशोषित कर अपने जीव कोशों में अवधारित कर लेती है | प्राकृतिक रूप में इन्हे खाने पर,उस ऊर्जा के भण्डार को हमारी आंत्र कोशिकाएं आत्मसात कर लेती हैं और उसे पचाने में भी कोई विशेष श्रम नहीं करना पड़ता |
शरीर के लिए विशेष उपयोगी अंकुरित अन्न
हरी साग-सब्जियों का अंकुरित अन्नों के क्लोरोफिल युक्तरस को ग्रीन ब्लड के नाम से सम्बोधित किया गया है | इसमें पोषण प्रदान करने एवं स्वास्थ्य सम्बर्धन करने वाले सभी प्रकार के तत्वों का समावेश होता है | खून को शुद्ध कर क्र रक्त कणों की अभिवृद्धि करने में उक्त रस की भूमिका महत्वपूर्ण होती है | चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ. ब्रिशर इसे “सूर्य शक्ति केंद्रित” मानते हैं और कहते हैं की “क्लोरोफिल के अणु मानव रक्त में पाए जाने वाले हीमोग्लोबिन कणों से बहुत कुछ समानता रखते हैं , यही कारण है की इसके सेवन से रक्त कणों की संख्या में असाधारण रूप से अभिवृद्धि देखि जाती है | हरे रस का नियमित सेवन रक्त अभिसंचरण की प्रक्रिया को संतुलित तथा ह्रदय तंत्र को सशक्त बनाता है | स्वसनतंत्र,गर्भाशय एवं आंतो के लिए विशेष लाभकारी पाया गया है |
नोवेल पुरुस्कार विजेता विख्यात चिकित्सा शास्त्री डॉ. फिशर ने रक्त अल्पता दूर करने में अंकुरित अन्नों के जवारे का सफल प्रयोग किया है | इसके अतिरिक्त आंत्र शोथ ,त्वचा रोग,पेट में अल्सर,पायरिया जैसे रोगों से लगभग १२०० व्यक्तियों के उपचार में भी उन्हें पर्याप्त सफलता मिली है | उनके अनुसार अंकुरों के रस में अबतक परिक्षण के उपरांत अंकुरित गेहूं को पूर्ण आहार बताया है और कहा है कि एक ग्राम अंकुर में जितने पोषक तत्व पाए जाते हैं उसकी तुलना में 25 गुना अधिक साग-सब्जियां भी मिलकर भी उनकी पूर्ती नहीं कर सकती हैं| शरीर के अंदर एकत्र दूषित पदार्थों को दूर कर रस - रक्त का निर्माण,परिशोधन एवं अभिवर्धन करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है |
रोगनाशक हैं जवारे -
धान्यों अंकुर पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से युक्त होने के कारण दुर्बलता दूर करने के साथ-साथ शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता का विकास करते हैं | इस सन्दर्भ में अमेरिका की महिला चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ. एनविगमोर ने गहन अनुसन्धान किया है | प्राकृतिक चिकित्सा सम्बन्धी संस्था “हिपाकैट हेल्थ इंस्टिट्यूट” में वह अपने मरीजों का गेहूं के जवारे के रस से उपचार करती हैं | उनके अनुसार इस जीवंत आहार से कितने ही रोगियों को नव जीवन मिला है | इस प्रयोग के लिए उन्होंने गेहूं को सबसे अधिक उपयोगी पाया है | उनके अनुसार मूल बीजों में जितनीं मात्रा में लेटराइल होता है अंकुरित अन्नों एवं कच्ची सब्जियों में यह 100 गुना अधिक पाया जाता है | इसी तरह सेम के बीजों को अंकुरित कर लेने पर उसमे इन्सुलिन कई गुना अधिक बढ़ जाता है | मधुमेह रोगियों के लिए अंकुरित सेम बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है
आहार वैज्ञानिकों का कहना है कि अन्न-धान्य ,दाल आदि के अंकुर अपने आरम्भिक काल में विटामिनो के भण्डार होते हैं | 5 दिन के अंकुरित गेहूं एवं जौ में सामान्य दानो की तुलना में 500 गुना अधिक जीवन तत्वों का बाहुल्य देखा गया है उसी तरह प्रोटीन की मात्रा एवं विविधता में भी वृद्धि पायी गयी है | शुरू के दिनों में इस अंकुर में प्रायः स्टार्च भर होता है किन्तु जैसे जैसे बढ़ते जाते हैं स्टार्च शक्ति प्रदान करने वाले शुगर में बदल जाता है | उनके अनुसार अंकुरित अन्नों को सदैव कच्चा ही खाना चाहिए | उबालने पर उनके उपयोगी तत्व नष्ट हो जाते हैं | क्लोरोफिल युक्त अंकुरित आहार तैयार करने के लिए इसे कपडे से ढककर हल्की धुप में रखना पड़ता है | इससे उनमे हरापन आ जाता है जिसे सलाद के रूप में अथवा पीसकर घोल के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है |
अंकुरित अन्न एवं उनके जवारों से निश्चित रूप से अशक्त रोगी भी जीवंत आहार से स्वस्थ हो जाते हैं | इसके प्रयोग में ऐसे लोगो को आरम्भ में गेहूं के स्वस्थ बीजों को २ कप पानी में 24 घंटे भिगोकर रखने पर तैयार किया जाता है | प्रतिदिन २-३ गिलास इस पानी को छानकर पीने से शरीर का बजन भी बढ़ता है, स्फूर्ति भी आती है तथा जीवनशक्ति भी बढ़ती है |
दैनिक जीवन में सीधे सादे ढंग से काम आने वाली वस्तुओ का महत्व हम भूल जाते हैं और कभी कभी मिलने वाली अजनबी और महंगी बस्तुओ को वरदान समझ कर अपनाने के लिए दौड़ते हैं |
गेहूं में समाय हैं बहुमूल्य जीवन तत्व - एक दिन-रात पानी में भिगोकर यदि गेहूं खाया जाए तो उसमें सूखे गेहूं की अपेक्षा 30 गुना से अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं | गेहूं के जवारे की महत्ता के संबंध में कहा गया है की संसार में कोई रोग ऐसा नहीं जिसे इस घांस के उपयोग से अच्छा न किया जा सकता हो | इसे बुढ़ापा दूर करने वाली महत्वपूर्ण पुष्टई भी बताया गया है | जवारे के रस को हरे रक्त की उपमा दी गयी है | यह रस मानव रक्त से ४०% मेल खाता है |
रस बनाने की विधि - इस रस को बनाने की विधि इस प्रकार है 1 दर्जन मिटटी के गमले या ऐसे ही कोई चौड़े बर्तन ले लीजिये , उनमे खाद और मिटटी भर दीजिये | उनमे अच्छी किस्म का गेहूं वो दीजिये | थोड़ा पानी डालिये और छाया में किसी बरामदे में रख दीजिये | 3-4 दिन में अंकुर ऊग आएंगे | और 8-10 दिन में 7-8 इंच बढ़ जाएंगे|
इनमे से ३०-४० पौधे पहले दिन जड़ सहित उखाड़ लें | जड़ को काट कर फेक दें | वाकई घास को धोकर पानी के साथ पीस लें| फिर इसे जाली से छानकर पिया जाए| सुबह शाम दोनों समय यह रस पीना चाहिए | यह रस हर बीमारी में औषधि का काम करता है | पोषण में किसी कीमत पर फल के रस से कम उपयोगी सिद्ध न होगा | घास के छोटे टुकड़े कर के सलाद के रूप में भी खाया जा सकता है | इस घास को 7-8 इंच से बड़ा नहीं होने देना चाहिए | बड़ा होने पर इनकी उपयोगिता घट जाती है | जिस गमले से घास उखाड़ी जाए उसमे उसी दिन नया गेहूं वो दिया जाये जिससे नियमित रूप से हमें जवारे मिलते रहे | रस को ज्यादा देर तक नहीं रखना चाहिए नहीं तो उसकी उपयोगिता नष्ट हो जाएगी
यदि हम भी रोगों से बचना चाहते है,पूर्णतः स्वस्थ रहना चाहते हैं तो प्रकृति के इस अनुपम उपचार का नियमित तथा निश्चित रूप से प्रयोग करें |
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