"स्वस्थ कौन है और हमेशा स्वस्थ कैसे रहें – आयुर्वेद की दृष्टि से" ? Meta Description:

Apr 15, 2025
आयुर्वेद ज्ञान
"स्वस्थ कौन है और हमेशा स्वस्थ कैसे रहें – आयुर्वेद की दृष्टि से"  ? Meta Description:

स्वस्थ कौन है और कैसे रहेंगे 

जो व्यक्ति तन और मन दोनों तरह से स्वस्थ रहता है वही व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ कहलाता है | तन से वह व्यक्ति स्वस्थ होता है जिसमे बात पित्त और कफ सामंजस्य अवस्था में रहता है परन्तु तन से व्यक्ति जब तक स्वस्थ नहीं रह सकता जब तक वह मन से स्वस्थ न हो मन से वही व्यक्ति स्वस्थ रहता है जो सदाचारी हो सदाचारी वही व्यक्ति होता है जिसमे काम क्रोध लोभ जैसे महाभूतों पर स्वयं का नियंत्रण रहता है | शास्त्रों में लेख किया गया है की जो व्यक्ति कामी होता है उसका बात कुपित हो जाता है और जो व्यक्ति क्रोधी होता है उसका पित्त कुपित हो जाता है और लोभी व्यक्ति का कफ कुपित हो जाता है अतः सदाचारी व्यक्ति ही पूर्ण स्वस्थ रहने की कल्पना कर सकता है | 

स्वस्थ कैसे रहें -संसार के सभी बलों में संकल्प बल श्रेष्ठ है जो व्यक्ति संकल्प बल के साथ आदर्श दिनचर्या का पालन करता है वही व्यक्ति स्वस्थ रह पाता है | आदर्श दिनचर्या के लिए व्यक्ति को सुबह उठने से लेकर रात्रि सोने तक सभी कार्य व्यवस्थित एवं सही समय पर करना होगा | 

दिनचर्या में निम्न कार्य सही समय पर करना अतिआवश्यक है  

प्रातः जागरण – पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए व्यक्ति को ब्रम्ह मुहूर्त में सूर्योदय के डेढ़ से तीन घंटे पहले शैय्या त्याग करना चाहिए | ब्रम्ह मुहूर्त की बड़ी महिमा है इस समय उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ ,धन,विद्या ,बल और तेज़ बढ़ता है जो सूर्योदय के बाद उठता है उसकी उम्र और शक्ति घटती है तथा वह नाना प्रकार की बीमारियों का शिकार होता है | यह बात सर्व विदित है की जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद मल त्याग करता है वह आजीवन कब्ज का शिकार रहकर कई कई प्रकार की बीमारियाँ इक्कठी कर लेता है | 

उषा:पान – प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व मल त्याग करने से पहले ठंडा या गरम 4 गिलास जल पीना उषा: पान कहा जाता है | 

मल-मूत्र त्याग – उषा:पान के बाद मल विसर्जन करने से व्यक्ति कभी कब्ज का शिकार नहीं होता एवं स्वस्थ रहता है | 

दन्त धावन – शौंच निवृति के पश्चात व्यक्ति को दातोन तथा मंजन से दन्त साफ़ करना चाहिए | 

व्यायाम – व्यक्ति को यथाशक्ति अनुसार पाचन क्रिया तथा जठराग्नि को ठीक रखने के लिए शरीर को सुगठित,सुढृढ़ और सुडोल बनाने के लिए आयु ,बल,और काल के अनुरूप नियमित रूप से योगासन एवं प्राणायाम करना आवशयक है | जो व्यक्ति योगासन एवं प्राणायाम नहीं कर सकते उन्हें प्रतिदिन अपनी शरीर की के अनुसार 3 से 5 किलोमीटर घूमना अति आवश्यक है | 

स्नान –व्यक्ति को प्रतिदिन स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए जहा तक ठन्डे जल से स्नान करना चाहिए परन्तु उम्र के अनुसार एवं ठण्ड में गर्म पानी से भी नहाया जा सकता है | नहाते समय मुँह में पानी भरकर आँखों में छींटे मारकर आँखों की सफाई भी नियमित रूप से करे | 

इष्ट देव पूजन – स्नान के बाद एवं संध्या काल में नियमित रूप से अपने अपने इष्ट देव की पूजा प्रार्थना अवश्य करे पूजा करते समय मन को सब तरफ से हटाकर एकाग्रचित होकर प्रभु में लगाना चाहिए | 

भोजन करते समय निम्न सावधानी वरते –

(1 )- भोजन हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ऒर मुँह करके करना चाहिए | भोजन दक्षिण दिशा की ऒर मुँह करकर कभी न करे| 

 (2 )- भोजन शुरू करने के पूर्व सलाद खाएं ,सलाद में मूली ककड़ी ,चुकंदर ,प्याज गाजर इत्यादि लेकर बड़ी प्लेट मैं काटें उसमे एक नीबू निचोड़कर काला नमक एवं पिसी काली मिर्च मिला कर पूरा सलाद खाने के बाद ही भोजन करना शुरू करें | 

(3 )-हमेशा संतुलित भोजन ही करें | भोजन इतना करें जिससे हमारे अमाशय में ¼ भाग में भोजन 1/2 भाग में जल एवं ¼ भाग खाली रहना चाहिए | 

(4 )- अपने भोजन में 3 सफ़ेद चीज़ों का प्रयोग न करें [1] नमक [2] मैदा [3] शक्कर , नमक की जगह काला नमक ,शक्कर की जगह गुड़ का प्रयोग करें | 

(5 )- शाम का भोजन रात्रि 8 बजे के बाद न करें | भोजन कम करें उम्र के अनुसार मूंग दाल की खिचड़ी लें | 

(6 )- भोजन में प्रतिदिन एक आंवले का प्रयोग अवश्य करें क्योकि आयुर्वेद में कहा गया है की आवला अमृत है जो प्रतिदिन एक आंवले का प्रयोग करता है उसकी स्वस्थ आयु मिनिमम 100 वर्ष होती है | 

 (7)- भोजन के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए क्योकि इससे जठराग्नि ठंडी हो जाती है ,पाचन क्रिया धीमी पड जाती है | भोजन के एक घंटे बाद इक्छानुसार जल पीना चाहिए | 

(8 )- कभी भी खड़े होकर जल न पियें जो व्यक्ति खड़े होकर जल पीता है उसके घुटनों का दर्द दुनिया की कोई भी महंगी से महंगी दवा ठीक नहीं कर सकती | 

(9 )- भोजन के तुरंत बाद बिस्तर पर नहीं लेटना चाहिए ,भोजन के बाद कम से कम 100 कदम अवश्य चलें जिससे हमारी पाचन क्रिया प्रारम्भ हो जाती है यदि चल न सकें तो बज्रासन में अवश्य बैठें | 

(10 )- भोजन शुद्ध भाव से करना चाहिए | क्रोध,ईर्ष्या,उत्तेजना,चिंता ,मानसिक तनाव, भय आदि की स्तिथि में किया गया भोजन शरीर के अंदर दूषित रसायन पैदा करता है जिसके फलस्वरूप शरीर विभिन्न रोगों से घिर जाता है | 

शयन — रात में भोजन करने के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए | सोने के पूर्व सद्ग्रंथो का अध्यन करना चाहिए | हमेशा दक्षिण या पूर्व दिशा की ऒर सिर कर के सोना चाहिए | बाईं करवट सोना स्वास्थ के लिए उत्तम है |

   अगर हम उपरोक्त उल्लेखित सावधानियों को अपनी दिनचर्या में शामिल करें तो निश्चित रूप से हम कई प्रकार बीमारियों से बच सकते हैं |  



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