शरीर में अचानक ही विभिन्न स्थानों पर धीरे-धीरे सफेद चिन्ह निकलते निकलते पूरी तरह से फैलने लगते हैं यदि प्रारंभ में ही उपयुक्त उपचार नहीं किया जाता है तो यह रोग शरीर के समस्त चर्म को श्वेत चिन्हों के रूप में परिवर्तित कर देता है यह बहुत बड़ा रोग है और जड़ पकड़ने पर इसे नियंत्रित करना कठिन हो जाता है इसका उपचार सरल नहीं है बल्कि दीर्घगामी है।
रोगके कारण
(1) सामान्य रूप से जब शरीर में मेलानिन पिगमेंट की कमी हो जाती है तो चमड़ी सफेद होने लगती है। (2) सदा कब्ज रहने, पेचिश, संग्रहिणी, हृदय निर्बल, अतड़ियां खराब होने पर सफेद दाग हो जाते हैं (3) दिमाग परअधिक बोझ पड़नेपर भी यह रोग हो जाता है।
(4) मांसाहारियों को यह रोग अधिक हो सकता है।
उपचार -- यह रोग अत्यन्त पेचीदा और दुष्प्रवृत्ति का है परंतु साध्य है। नियमित रूपसे खान-पानमें पूरा नियंत्रण रखनेसे, चिह्नों पर दवाओंका प्रयोग करनेसे धीरे-धीरे श्वेत चिन्ह चिन्ह समाप्त हो जाते हैं।
१. खान-पानपर नियन्त्रण भोजन साग सब्जी, दालों और फलों आदि के सेवन करने में सभी प्रकार के नमक का परित्याग करना परम आवश्यक है, तभी दवाओंका उपयोग सार्थक एवं प्रभावी हो सकेगा। नमका प्रयोग या नमक मिश्रित पदार्थों एवं द्रव्यों-रसोंका परित्याग करना अति आवश्यक है
2. केला (हरा), करेला, लौकी, तोरई, सेम, सोयाबीन, पालक, मैथी, चौलाई, टमाटर, गाजर, परवल, मूली, शलजम, चुकन्दर आदिको बिना नमकके प्रयोग करें
3 दालोंमें केवल चने की दाल नमक रहित प्रयोग करें.
4 गाजर, पालक, मौसमी करेलाका रस नमकरहित अधिकतर पीयें। बथुए का रस प्रतिदिन पीना भी लाभकारी है
5 चने की रोटी नमक रहित देशी घी और बूरे के साथ खायें
6 भुने हुए उबले हुए चने नमक रहित प्रयोग करें।
खाने की औषधि
अनार के पत्तों को छाया में सुखाकर बारीक करके पीस लें और प्रातः 10 ग्राम तथा रात को सोते समय 10 ग्राम प्रतिदिन ताजा पानी या गाय के दूध के साथ सेवन करें अथवा बावची के बीज भिगोकर नियमित रूप से प्रातः एवं रात को इसके पानी का सेवन करें और बीज घिस कर दागों पर लेप करें अथवा माणिक्य भस्म आधा रत्ती नियमित रूप से प्रातः तथा सांय शहद के साथ प्रयोग करें अथवा पिगमेंट की दो-दो गोलियां प्रातः दोपहर तथा सांयकाल में सेवनीय है
3 दागों पर लगाने की औषधि
दो तोला बावची के भिगोए हुए बीजों को पीसकर प्रातः साऺय अर्थात दो बार प्रतिदिन प्रयोग करें अथवा बथुए का रस एक गिलास तथा आधा गिलास तिल का तेल कढ़ाई में गर्म करें और बथुए का रस जलने पर तेल को सीसी में रखें और प्रतिदिन प्रातः सांय दागों पर लगाएं अथवा बावची के तेल रोगन प्रातः सांय दागों पर लगाएं अथवा उड़द की दाल को पानी में पीसकर या लहसुन के रस में हरड़ घिसकर सफेद दागों पर प्रातः सांय लगाए अथवा हल्दी 150 ग्राम स्पिरिट 600 ग्राम मिलाकर धूप में रखकर दिन में तीन बार चिन्हों पर लगाएं अथवा तुलसी के पौधे को जड़ सहित उखाड़ कर पानी से साफ कर सिल पर बारीक पीस लें और इसे आधा किलो तिल के तेल में मिलाकर कड़ाही में डालकर धीमी आग पर गर्म करें जब पक जाए तब छान कर किसी बर्तन में रखें और दिन में तीन बार दागों पर लेप करें अथवा बेहया के पौधे को उखाड़ने पर निकले हुए दूध का लेप नियमित रूप से दिन में दो बार करें अनार तथा नीम के पत्ते पीसकर प्रातः सांय दागों पर लेप करें विशेष खान-पान में चीनी, गुड़, दूध, दही, अचार तेल, डालडा मट्ठा, रायता, आवलेह पाक आदि का प्रयोग भी वर्जित है
त्वचा में मेलेनिन की कमी
आटोइम्यून डिसऑर्डर (Autoimmune disorder)
लिवर की कमजोरी या पाचन तंत्र का खराब होना
ज्यादा मांस, मछली, दूध, नींबू एकसाथ खाना
विटामिन B12, D की कमी
मानसिक तनाव
अनुवांशिक कारण (Genetic factors)
केमिकल एक्सपोजर या जलन
प्रयोग: बाखनू के बीजों को रात भर पानी में भिगोकर छील लें, फिर पीसकर दाग पर लगाएं।
Babchi oil (बाजार में उपलब्ध) को धूप में लगाने से लाभ होता है।
भीतर से: बाखनू पाउडर को शहद के साथ थोड़ा-थोड़ा सुबह-शाम लें।
⚠ धूप में लगाकर 15–20 मिनट से ज़्यादा न रखें, स्किन जल सकती है।
नीम की पत्तियाँ या उसका रस रोज़ पिएं।
गिलोय का रस (10-15 ml) सुबह-शाम पीने से इम्युनिटी बढ़ती है।
हल्दी पाउडर और सरसों तेल को मिलाकर पेस्ट बना लें।
इसे दिन में 2 बार दाग पर लगाएं।
यह मेलेनिन निर्माण में सहायक होता है।
ये रक्त को शुद्ध करते हैं और त्वचा को पोषण देते हैं।
रात भर तांबे के बर्तन में पानी रखें और सुबह खाली पेट पिएं।
यह लीवर को मजबूत करता है और त्वचा रोगों से बचाता है।
यह संयोजन पाचन सुधारता है और रक्त शुद्ध करता है।
रोज़ रात को त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी से लें।
प्राणायाम (अनुलोम-विलोम, कपालभाति)
सूर्य नमस्कार
ध्यान व तनाव प्रबंधन
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