उदर रोगके कारण, लक्षण एवं आयुर्वेदीय चिकित्सा

Jul 07, 2025
आयुर्वेद ज्ञान
उदर रोगके कारण, लक्षण एवं आयुर्वेदीय चिकित्सा

संपूर्ण उदर रोग यतः त्रिदोषज होते हैं अतः सर्वत्र वात आदि तीनों दोषों को शांत करने वाली क्रियाएं करनी चाहिए। उदर के दोष पूर्ण होने पर अग्निमांद्य हो जाता है अतः इस रोग में अग्नि प्रदीपक और लघु भोजन करना चाहिए। जौं, मूंग ,दूध ,आसव, अरिष्ट ,मधु आदि का इस रोग में उपयोग करना उत्तम है

     दोषोंके अति संचय से तथा स्रोतों के बंद हो जाने से उदर रोग पैदा होते हैं। अतः उदर रोगी को नित्य विरेचन देना चाहिये। विरेचन में गोमूत्र का अथवा दूध के साथ अरण्ड तेल का पान करना चाहिये।


उदर शब्दसे उदर प्रदेश में रहनेवाले क्षुद्रान्त्र ,बृहदांत्र ,यकृत्, प्लीहा, तथा उदरावर्णीकला आदि अङ्ग ग्रहण किये जाते हैं और इन प्रदेशों में होनेवाली विकृति का नाम उदर रोग माना जाता है। जठराग्नि की दुर्बलता से मल-वातादि दोष (मूत्र-पुरीष) जब बढ़ जाते हैं, तब उनसे अलग-अलग अनेकों रोग उत्पन्न होते हैं। विशेषकर मल वृद्धि से अग्नि की दुर्बलता और उदर रोग उत्पन्न होते हैं। मलिन आहारों से अग्नि के मन्द हो जाने पर जब उचित रूपसे आहारों का पाचन नहीं हो पाता तब उदर में दोषोंका संचय होने लगता है। यह दोष-संचय प्राणवायु और अपान वायुको विशेष रूप से दूषित कर ऊर्जा तथा अधोमार्गो॑ को रोक देता है, उससे जब ऊपर एवं नीचे का मार्ग बंद हो जाता है तब यह दूषित मल और वातादि दोष त्वचा तथा मांस के बीच में आकर उदर में व्याधि उत्पन्न करते हैं और उदर रोग का कारण बनते हैं

   आहार का पाचन उदर में होता है जब पाचन की विकृति हो जाती है तो दोषों का संचय उदर के विभिन्न अंगों यकृत तथा प्लीहा आदि में होता है जिससे वातादि दोष वहीं रुक जाते हैं और उदर फूल जाता है हल्की वेदना होती है पेट में गुड़गुड़ाहट और अजीर्ण के सभी लक्षण पाए जाते हैं साथ ही शिर शूल, मंदाग्नि,  अरुचि,  आलस्य आदि के लक्षण भी पाए जाते हैं

प्रत्येक उदर रोग की अंतिम अवस्था में जलोदर हो जाता है और यह उदर रोग की असाध्य अवस्था है अतः उदर रोग के प्रारंभ में उपेक्षा नहीं करनी चाहिए 

      उदर रोग के शमन के लिए पीपर, सौंठ दंतीका मूल, चित्रक का मूल और विहंग इन पांच द्रव्यों का चूर्ण सम भाग में और हरण का चूर्ण इससे दूनी मात्रा में लेकर गर्म जल से इस चूर्ण का सेवन करना चाहिए

औषध प्रयोग --1-- सौंठ, काली मिर्च, पिप्पली अजवाइन सेंधा नमक, श्वेत जीरा ,काला जीरा, हींग, प्रत्येक का चूर्ण सम भाग मिश्रित कर भोजन के पूर्व तीन ग्राम की एक मात्रा घी के साथ सेवन करने से अग्नि वृद्धि होती है तथा वात रोग नष्ट होते हैं ।

2-- अग्नितुन्डी वटी प्रातः सायं दो दो गोली जल से भोजन के बाद लें 

3-- कुमार्यासव-- चार-चार चम्मच बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद लंबे समय तक सेवन करना चाहिए 

4--मट्ठे  का प्रयोग जीरा भूनकर काला नमक काली मिर्च के साथ लें ।

5-- आरोग्यवर्धिनी दो दो गोली तीन बार जल से लें 

 5-- अश्विनी नारायण चूर्ण एक चम्मच सोते समय जल से लेना चाहिए यह समस्त उदर रोगों के लिए रामबाण औषधि है इसका अद्भुत लाभ देखने को मिलता है यह मल को कुपित होने ही नहीं देता प्राय अनियमित  दिनचर्या के कारण अधिकतर लोग विविध रोगों से ग्रसित होते हैं परिणाम होता है बवासीर और उदर रोगों का यहीं से  प्रारंभ होता है

उदर रोग के कारण (Causes of Abdominal Diseases)

  1. अस्वस्थ खानपान: तली-भुनी, मिर्च-मसालेदार या बासी चीज़ों का अधिक सेवन

  2. अनियमित दिनचर्या: समय पर भोजन न करना, देर रात तक जागना

  3. तनाव और चिंता: मानसिक तनाव से भी पाचन प्रणाली प्रभावित होती है

  4. ज्यादा दवाइयों का सेवन: जैसे पेनकिलर या ऐंटिबायोटिक

  5. वात, पित्त और कफ दोष का असंतुलन

  6. कम पानी पीना व व्यायाम न करना

  7. खाली पेट रहना या भूख लगने पर न खाना

    उदर रोग के लक्षण (Symptoms of Udar Rog)

    • पेट दर्द या ऐंठन

    • गैस बनना और पेट फूलना

    • अपच (भोजन ठीक से न पचना)

    • बार-बार डकार आना

    • कब्ज़ या दस्त

    • पेट में जलन या भारीपन

    • भूख न लगना

    • मुँह का स्वाद खराब रहना

    • पेट में गड़गड़ाहट या मलत्याग में कठिनाई

      निवारण और सावधानियाँ (Precautions):

      • साफ़ पानी और हाइजीनिक खाना लें

      • भोजन के तुरंत बाद सोने से बचें

      • तैलीय, फास्ट फूड और कोल्ड ड्रिंक से परहेज़ करें

      • किसी भी लक्षण को नजरअंदाज न करें – समय पर इलाज करें

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