यकृत हमारे शरीर का एक अति महत्वपूर्ण अंग है | इसका बजन 1.5 किलो तक होता है | यकृत रोग कई प्रकार के होते हैं जैसे- पीलिया,जलोदर,यकृत ट्यूमर ,यकृत कैंसर,यकृतवृद्धि,यकृतसूजन,यकृतक्षय | रक्त की जांच कराने से इन सभी यकृत रोगों का पता चलता है | यकृत की पूरी तरह आधुनिक यंत्रों से पर सब कुछ स्पष्ट हो जाता है | ये जांचे डॉक्टर की सलाह से करवाए|
निरंतर तनाव से आपके स्वास्थ्य और व्यक्तित्व पर दुष्प्रभाव पड़ता है,जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते | सिरदर्द,पेट की गड़बड़ियां और कमरदर्द उन अनेक बीमारियों में से हैं,जो तनाव की वजह से हो जाती है | इनके कारण आपकी खुशियों और संबंधों में दरार पड जाती है | लेकिन निम्न सु
सफ़ेद दाग एक त्वचा रोग है | इसी को ल्यूकोडर्मा(leucoderma),श्वेत कुष्ठ,सफ़ेद कुष्ठ,श्वित्र कुष्ठ इत्यादि नामों से सम्बोधित किया जाता है | यह त्वचा में मेलनिन(melanin) नामक रंजक पदार्थ की कमी के कारण होता है | इस रंजक पदार्थ को malanocytes मेलैनोसाइट्स नामक त्वचा की कोशकाएँ बनाती हैं | जब किसी कारणवश मेलैनोसाइट्स अपने कार्य करना बंद कर देती हैं तो श्वेत कुष्ठ की उत्पत्ति होती है | यह पहले लाल रंग के दाग के रूप में दिखाई देता है,फिर धीरे-धी
पुदिना एक सुगन्धित एवं उपयोगी औषधि है | आयुर्वेद के मतानुसार यह स्वादिष्ट,रुचिकर,पचने में हल्का,तीक्ष्ण,तीखा,कड़वा,पाचनकर्ता और उल्टी मिटाने वाला,ह्रदय को उत्तेजित करने वाला,विकृत कफ को बाहर लाने वाला तथा गर्भाशय-संकोचक एवं चित्त को प्रसन्न करने वाला,जख्मों को भरने वाला और कृमि,ज्वर,विष,अरुचि,मंदाग्नि,अफरा,दस्त,खांसी, श्वाश, निम्नरक्त चाप,मूत्राल्पता,त्वचा के दोष,हैजा
पथरी जिसे संस्कृत में अश्मरी के नाम जाना जाता है अप्राकृतिक आहार-विहार,अपथ्यकारी वस्तुओ के अधिक सेवन,मल-मूत्र के वेगों को रोकना,चिकनाई वाले पदार्थ का उपयोग ,एक ही औषधि का अधिक सेवन करने जैसे अनेकों कारणों से होने वाला रोग है |
नवजात शिशु या बच्चा जब माँ के गर्भ में रहता है तो उसका समुचित विकास होता रहता है लेकिन प्रसव के पश्चात इसके स्वास्थ और विकास में अवरोध पड़ने लगता है और वह रोगों से ग्रसित हो जाता है | इन रोगो के होने का मुख्य कारण है प्रसव के उपरांत माँ द्वारा अपना दूध न पिलाना| छोटे बच्चों को विशेषकर दस्त,निमोनिया,कुपोषण, डिब्बा रोग(पसली चलना),सूखा रोग,अपच गैस आदि अनेक व्याधियां अपने चंगुल में फसा लेती हैं | यदि समय रहते उनका उपचार न किया जाये तो गंभीर परिणाम सामने आते हैं |
गाजर को उसके प्राकृतिक रूप अर्थात कच्चा खाने से ज्यादा लाभ होता है | उसके अंदर का पीला भाग नहीं खाना चाहिए,क्योंकि वह अत्यधिकगाजर गरम होता है | अतः पित्तदोष,वीर्यदोष एवं छाती में डाह उत्पन्न करता है |
एक्जिमा किसी दूसरे रोगी के संपर्क में आने से होता है | यदि किसी स्त्री-पुरुष,किशोर या प्रौढ़ को एक्जिमा हो जाये तो फिर वर्षों तक उसे पीड़ित कर सकता है | भोजन में लापरवाही और उचित चिकित्सा नहीं हो पाने के कारण एक्जिमा लम्बे समय तक त्वचा पर बना रहता है | किसी औषधि से एक्जिमा को दबा दिया जाये तो थोड़े दिनों बाद फिर से उभर जाता है | चिकित्सा विशेषज्ञों के अनु
आज के युग में मनुष्य अस्पतालों तथा अंग्रेजी दवाइयों की दुनिया मेंइतना खो गया है की उसे अपने आसपास बहुतायत में उपलब्ध होने वाली उन साग-सब्जियों कीध्यान देने का समय ही नहीं मिलता,जो बिना किसी हानि के हमारी अनेक बीमारियों को निर्मूल करने में सक्षम है| प्रकृति हमारे लिए शीत-ऋतू में इस प्रकार की साग-सब्जियां उदारतापूर्वक उत्पन्न करती है ,इन्ही में एक विशेष उपयोगी वस्तु है मूली |
पुनर्नवा - पुनर्नवा,साटि या विषखपरा के नाम से विख्यात यह वनस्पति वर्षा -ऋतू में बहुतायत से पायी जाती है | शरीर की आंतरिक एवं बाह्य सूजन को दूर करने के लिए यह अत्यंत उपयोगी है | यह तीन प्रकार की होती है - सफ़ेद,लाल एवं काली | काली पुनर्नवा प्रायः देखने में नहीं आती | पुनर्नवा की सब्जी शोथ (सूजन ) - नाशक,मूत्रल तथा स्वास्थवर्धक है | पुनर्नवा कड़वी,उष्ण,तीखी,कसैली,रूच्य,अग्निदीपक,रुक्ष,मधुर,खारी,सारक,मूत्रल एवं ह्रदय के लिए लाभदायक है | यह पांडुरोग,विषदोष एवं शूलका भी नाश करती है | पुनर्नवा- औषधीय प्रयोग
सहजन सम्पूर्ण भारत में पाया जाने वाला एक वृक्ष विशेष है | इसकी फली सब्जी के रूप में प्रयुक्त होती है | इसमें शोभांजन,शिग्रु,कृष्णबीज,साजिना,साजना,सुरजना,सुलझना,सेजना,सैजना,सरगनो,सरगवो,सेक्टो,शेवगा, मुआ,मरुगायी,बड़ा डिसिंग,मूंगा चेझाड़,सरागू,मुरंगाई,विद्रधिनाशन,स्त्रीचितहारी तथा इंडियन हार्स रेडिश के नाम से जाना जाता है |
बिल्ववृक्ष प्रायः धार्मिक स्थानों विशेषकर भगवान् शंकर के उपासना-स्थलों पर लगाने की भारत में एक प्राचीन परंपरा है | यह वृक्ष अधिक बड़ा न होकर मध्यम आकारवाला होता है | शाखाओं पर तीक्ष्ण कांटे होते हैं | पत्ते तीन-तीन या पांच-पांच के गुच्छों में लगते हैं | बेल का फूल सफ़ेद तथा सुगन्धपूर्ण होता है | फल प्रायः गोलाकार कड़े आवरणवाला,स्वादिष्ट मधुर और ह्रदय को प्रिय लगने वाली सुगंध लिए होता है | गूदे में सैंकड़ों बीज गोद में लिपटे हुए रहते हैं | वसंत ऋतू के
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